Friday, January 3, 2020

नागरिकता क़ानूनः पीएम मोदी का विपक्ष पर हमला, कहा पाकिस्तान पर चुप्पी क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता क़ानून को लेकर कांग्रेस और उनके सहयोगियों पर हमला करते हुए कहा है कि वे देश की संसद के ही ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलते जहाँ अल्पसंख्यकों का दमन किया जा रहा है.

मोदी ने कर्नाटक में एक सभा में कहा, "कांग्रेस के लोग, उनके साथी दल और उनके समर्थक आज भारत की संसद के ख़िलाफ़ ही उठ खड़े हुए हैं. जिस तरह की नफ़रत वो हमसे करते हैं वैसा ही स्वर अब देश की संसद के ख़िलाफ़ दिख रहा है. इन लोगों ने भारत की संसद के ख़िलाफ़ ही आंदोलन शुरू कर दिया है."

उन्होंने नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों पर आरोप लगाया कि वो लोग पाकिस्तान से आए दलितों-पीड़ितों-शोषितों के ख़िलाफ़ ही आंदोलन कर रहे हैं जबकि ज़रूरत इस बात की है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनक़ाब किया जाए.

नागरिकता संशोधन क़ानून के पास होने के बाद से ही भारत के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगह प्रदर्शन हिंसक हो गए. सिर्फ़ यूपी में ही विरोध प्रदर्शनों में 19 लोग मारे गए हैं. कर्नाटक में भी सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में कुछ लोग मारे गए थे.

पीएम मोदी ने कहा कि पाकिस्तान का जन्म धर्म के आधार पर हुआ और वहाँ दमन होने के कारण ही वहाँ के अल्पसंख्यकों को रिफ़्यूजी बनने पर मजबूर होना पड़ा.

मोदी ने कहा,"आज जो लोग भारत की संसद के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की हरकतों को बेनक़ाब किया जाना चाहिए."

"अगर आपको आंदोलन करना है तो पिछले 70 साल में पाकिस्तान की हरकतों के ख़िलाफ़ नारे लगाइए. अगर आपको नारे लगाने ही हैं तो पाकिस्तान में जिस तरह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है, उससे जुड़े नारे लगाइए. अगर आपको जुलूस निकालना ही है तो पाकिस्तान से आए हिंदू-दलित-पीड़ित-शोषितों के समर्थन में जुलूस निकालिए."

कर्नाटक के दो दिन के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर टुमकूर स्थित श्री सिद्धगंगा मठ में एक सभा में बोल रहे थे. ये मठ लिंगायत समुदाय की सबसे शक्तिशाली धार्मिक संस्था है.

इस मठ के स्वामी श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी ने पिछले साल 111 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी. उन्हें कर्नाटक में "वॉकिंग गॉड" या "चलता-फिरता भगवान" कहा जाता था.

अपने दो दिन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी भारतीय विज्ञान कांग्रेस को भी संबोधित करेंगे.

केंद्र सरकार ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पारित करवाया. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये विधेयक क़ानून बन गया.

मगर इस विधेयक के पारित होने के बाद से इसे लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है और इससे जुड़े प्रदर्शनों में हिंसा में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.

विरोध करने वालों का तर्क है कि ये क़ानून धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है जो संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है.

इस क़ानून में बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता मिल पाने का प्रावधान किया गया है.

इससे पहले 1955 के नागरिकता क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती थी और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान था.

पुराने क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम-से-कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था. संशोधित क़ानून में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागरिकता क़ानून को लेकर कांग्रेस और उनके सहयोगियों पर हमला करते हुए कहा है कि वे देश की संसद के ही ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोलते जहाँ अल्पसंख्यकों का दमन किया जा रहा है.

मोदी ने कर्नाटक में एक सभा में कहा, "कांग्रेस के लोग, उनके साथी दल और उनके समर्थक आज भारत की संसद के ख़िलाफ़ ही उठ खड़े हुए हैं. जिस तरह की नफ़रत वो हमसे करते हैं वैसा ही स्वर अब देश की संसद के ख़िलाफ़ दिख रहा है. इन लोगों ने भारत की संसद के ख़िलाफ़ ही आंदोलन शुरू कर दिया है."

उन्होंने नागरिकता क़ानून का विरोध करने वालों पर आरोप लगाया कि वो लोग पाकिस्तान से आए दलितों-पीड़ितों-शोषितों के ख़िलाफ़ ही आंदोलन कर रहे हैं जबकि ज़रूरत इस बात की है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेनक़ाब किया जाए.

नागरिकता संशोधन क़ानून के पास होने के बाद से ही भारत के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. कई जगह प्रदर्शन हिंसक हो गए. सिर्फ़ यूपी में ही विरोध प्रदर्शनों में 19 लोग मारे गए हैं. कर्नाटक में भी सीएए के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन में कुछ लोग मारे गए थे.

पीएम मोदी ने कहा कि पाकिस्तान का जन्म धर्म के आधार पर हुआ और वहाँ दमन होने के कारण ही वहाँ के अल्पसंख्यकों को रिफ़्यूजी बनने पर मजबूर होना पड़ा.

मोदी ने कहा,"आज जो लोग भारत की संसद के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं, मैं उनसे कहना चाहता हूँ कि आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की हरकतों को बेनक़ाब किया जाना चाहिए."

"अगर आपको आंदोलन करना है तो पिछले 70 साल में पाकिस्तान की हरकतों के ख़िलाफ़ नारे लगाइए. अगर आपको नारे लगाने ही हैं तो पाकिस्तान में जिस तरह अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है, उससे जुड़े नारे लगाइए. अगर आपको जुलूस निकालना ही है तो पाकिस्तान से आए हिंदू-दलित-पीड़ित-शोषितों के समर्थन में जुलूस निकालिए."

कर्नाटक के दो दिन के दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को बेंगलुरू से 70 किलोमीटर दूर टुमकूर स्थित श्री सिद्धगंगा मठ में एक सभा में बोल रहे थे. ये मठ लिंगायत समुदाय की सबसे शक्तिशाली धार्मिक संस्था है.

इस मठ के स्वामी श्री श्री श्री डॉक्टर शिवकुमारा स्वामीजी ने पिछले साल 111 साल की उम्र में अंतिम सांस ली थी. उन्हें कर्नाटक में "वॉकिंग गॉड" या "चलता-फिरता भगवान" कहा जाता था.

अपने दो दिन के दौरे में प्रधानमंत्री मोदी भारतीय विज्ञान कांग्रेस को भी संबोधित करेंगे.

केंद्र सरकार ने दिसंबर 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों से पारित करवाया. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये विधेयक क़ानून बन गया.

मगर इस विधेयक के पारित होने के बाद से इसे लेकर विरोध बढ़ता जा रहा है और इससे जुड़े प्रदर्शनों में हिंसा में कई लोगों की मौत भी हो चुकी है.

विरोध करने वालों का तर्क है कि ये क़ानून धर्म के आधार पर भेदभाव करने वाला है जो संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है.

इस क़ानून में बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता मिल पाने का प्रावधान किया गया है.

इससे पहले 1955 के नागरिकता क़ानून के तहत भारत में अवैध तरीक़े से दाख़िल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती थी और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने के प्रावधान था.

पुराने क़ानून के मुताबिक़ किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम-से-कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य था. संशोधित क़ानून में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है.