Wednesday, October 31, 2018

क्या महिंदा राजपक्षे मजबूरी में चीन की तरफ़ थे

''प्रधानमंत्री ऐसा हो, जिसे लोगों ने चुना हो. कोई एक या दो लोग चाहें जिसे, उसे प्रधानमंत्री नहीं बना सकते. उन्हें संसद का बहुमत जीतना होगा. राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना, हमें दुनिया की नज़रों में शर्मसार कर रहे हैं. दुनिया कहेगी कि हम एक मूर्ख देश हैं. संसद सर्वोच्च है. इन तमाम समस्याओं का समाधान संसद के ज़रिए किया जा सकता है. संसद में जो बहुमत साबित करेगा, वही प्रधानमंत्री बनेगा.''

ये शब्द श्रीलंका के लोगों की मिलीजुली आवाज़ है जो 26 अक्तूबर की शाम ढलने के बाद बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच राजधानी कोलंबों में सुनाई दे रहे थे.

श्रीलंका में इस समय एक राष्ट्रपति और 'दो प्रधानमंत्री' हैं. दोनों में से कौन 'असली' प्रधानमंत्री है, इसका फ़ैसला 16 नवंबर को होगा जब श्रीलंका की संसद में 'कुर्सी के दावेदार' अपना बहुमत साबित करेंगे.

श्रीलंका की राजनीति में फिलहाल तीन अहम किरदार हैं- मैत्रीपाला सिरीसेना, रानिल विक्रमसिंघे और महिंदा राजपक्षे.

मैत्रीपाला सिरीसेना इस समय राष्ट्रपति हैं. उन्होंने महिंदा राजपक्षे को श्रीलंका का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. तीसरे किरदार रानिल विक्रमसिंघे हैं जिन्हें राष्ट्रपति सिरीसेना ने 26 अक्तूबर को 'बर्ख़ास्त' कर दिया.

सत्ता का ये त्रिकोण श्रीलंका में कोई नया समीकरण नहीं है. लेकिन इन तीनों की भूमिकाएं ज़रूर बदल गई हैं.

महिंदा राजपक्षे श्रीलंका की राजनीति में पुराने और मज़बूत खिलाड़ी हैं. पृथकतावादी लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) की उखड़ती जड़ों के साथ राजपक्षे ने अपनी जड़ों को मज़बूत बनाया और वो साल 2005 से साल 2015 तक श्रीलंका के राष्ट्रपति रहे.

सबने मिलकर राजपक्षे को घेरा'
साल 2015 के जनवरी महीने में राष्ट्रपति का चुनाव हुआ. इस बार राजपक्षे को चुनौती दी मैत्रीपाला सिरीसेना ने. दोनों की एक ही पार्टी थी- श्रीलंका फ्रीडम पार्टी, लेकिन धड़े अलग अलग थे. महिंदा राजपक्षे पर 'तानाशाह बनने' और 'भ्रष्टाचार' करने के आरोप थे. राष्ट्रपति चुनाव में सिरीसेना को अप्रत्याशित जीत मिली.

श्रीलंका की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार वेंकट नारायण बताते हैं, ''सिरीसेना प्रधानमंत्री बनना चाहते थे. लेकिन राष्ट्रपति रहते महिंदा राजपक्षे ने ऐसा नहीं किया. इससे क्षुब्ध होकर श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के नेता सिरीसेना ने सिंघलियों की यूनाइटेड नेशनल पार्टी के नेता रानिल विक्रमसिंघे से हाथ मिलाया. दोनों ने मिलकर राजपक्षे के धड़े को हरा दिया. चुनाव के बाद सिरीसेना राष्ट्रपति बने और उन्होंने रानिल विक्रमसिंघे को प्रधानमंत्री बना दिया.''

इस चुनाव के साथ ही महिंदा राजपक्षे का ये भ्रम भी टूट गया कि वो एक सिंघला नेता हैं और सिंघला वोटों के बूते किसी को भी हरा सकते हैं. उन्होंने संविधान को भी बदला, जो श्रीलंका में किसी भी व्यक्ति को दो बार राष्ट्रपति बनने से रोकता है. सत्ता के लिए उनकी ये बेताबी लोगों को पसंद नहीं आई और तमाम गुटों ने मिलकर चुनाव में उन्हें पटखनी दी.

सिरीसेना और विक्रमसिंघे में दूरी कैसे बढ़ी
राष्ट्रपति सिरीसेना और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने शुरुआत तो अच्छी की लेकिन ये जुगलबंदी जल्द ही गड़बड़ाने लगी.

वरिष्ठ पत्रकार वेंकट नारायण बताते हैं, ''रानिल विक्रमसिंघे की छवि शहरी संभ्रांत वर्ग की है. कोलंबो और शहरी इलाके में उन्हें समर्थन हासिल है. इसके विपरीत सिरीसेना ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं. इन्होंने चुनाव में ये कहकर वोट बटोरे थे कि हम सत्ता में आने के बाद राजपक्षे के भ्रष्टाचार की पोल खोलेंगे, उन्हें सज़ा दिलवाएंगे. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं कर पाए, क्योंकि दोनों में सहमति नहीं बनती थी, दोनों एक-दूसरे से चर्चा तक नहीं करते थे. ''

वेंकट नारायण बताते हैं कि लगभग 15 दिन पहले एक ऐसा वाक़या सामने आया जिसने सिरीसेना और रानिल विक्रमसिंघे के रास्ते जुदा कर दिए.

वेंकट नारायण बताते हैं, ''कैबिनेट की एक बैठक में सिरीसेना ने कहा कि एक भारतीय है जो रॉ का आदमी लगता है, वो मेरी और गोटाभाया राजपक्षे की हत्या करना चाहता है. सिरीसेना ने रानिल विक्रमसिंघे से इसकी जांच-पड़ताल कराने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इस बात पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया. सिरीसेना को इस बात से भी शिकायत थी कि रानिल विक्रमसिंघे अपने करीबियों को अहम ओहदों पर रख रहे थे और इस बारे में उनसे चर्चा तक नहीं कर रहे थे.''

''दोनों में ग़लतफ़हमियां बढ़ने लगीं. कुछ दिन पहले जब रानिल विक्रमसिंघा भारत आए, प्रधानमंत्री मोदी से मुलाक़ात के बाद उन्होंने एक बयान जारी करके कहा कि सिरीसेना की वजह से भारत, श्रीलंका में निवेश नहीं कर रहा है. बयान में सिरीसेना का नाम नहीं लिया गया, लेकिन ठीकरा सिरीसेना के ही सिर पर फोड़ा गया था. यहां सिरीसेना को लगा कि अब बात नहीं बन सकती और रानिल विक्रमसिंघे को निकालना ही पड़ेगा. इसी वजह से 26 अक्तूबर की शाम राष्ट्रपति सिरीसेना ने विक्रमसिंघे को हटाकर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर महिंदा राजपक्षे को बैठा दिया.''

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