Wednesday, July 31, 2019

सांप्रदायिकता और संस्कृति के घालमेल पर क्या कहते थे प्रेमचंद

'साहित्‍यकार का लक्ष्‍य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है- उसका दरजा इतना न गिराइये. वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सचाई भी नहीं, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सचाई है.'

139 साल पहले 31 जुलाई को धनपत राय पैदा हुए थे. हम उन्‍हें प्रेमचंद के नाम से जानते और याद करते हैं. जी, मशहूर साहित्‍यकार, कलम का सिपाही प्रेमचंद! उनकी मौत भी 83 साल पहले हो चुकी है. यानी, कुल जमा 56 साल की उम्र पायी. ऊपर की लाइनें उन्‍हीं की हैं. 1936 की.

एक नज़र में लग सकता है कि आठ दशक पहले जो शख्‍़स इस दुनिया से जा चुका है, उसे याद करना महज़ एक रस्‍म अदायगी ही है.... क्‍योंकि जब वे लिख रहे थे तो देश गुलाम था. आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी. नया भारत बनाने के ढेरों ख्‍वाब थे. उस वक्त की समाजी- सियासी ज़रूरत कुछ और ही रही होगी.

चुनौतियाँ भी एकदम अलग थीं. हाँ, इतना ज़रूर है कि उनकी लिखी बातें उस वक्त को समझने के लिए ज़रूर कारग़र होंगी. मगर रचनाओं का जो भंडार वे जमा कर गए, अगर उन पर नज़र दौड़ाई जाए तो वे आज भी ज़िंदगी और समाज को समझने में निहायत मददगार है. इसलिए प्रेमचंद को याद करना, महज एक सालाना रस्‍म पूरा करना नहीं है.

आज़ादी के बाद हमने अनेक समाजी काम अधूरे छोड़े. इसलिए सत्तर साल बाद भी ऐसे ढेरों सवालों से हम हर रोज़ टकरा रहे हैं, जो सवाल मुल्क के सामने आज़ादी से पहले भी दरपेश थे. प्रेमचंद के दौर में भी फिरकापरस्ती यानी साम्प्रदायिकता, नफ़रत फैलाने और देशवासियों बाँटने का काम कर रही थी.

आज़ादी के आंदोलन की पहली पाँत के लीडरों की तरह ही प्रेमचंद का मानना था कि स्वराज के रास्‍ते में साम्‍प्रदायिक नफ़रत बहुत बड़ी बाधा है. इस सवाल के इर्द-गि‍र्द उनकी कई टिप्‍पणि‍याँ हैं. 1934 में एक लेख में प्रेमचंद कहते हैं कि 'हम तो साम्‍प्रदायिकता को समाज का कोढ़ समझते हैं जो ... अपना छोटा सा दायरा बना सभी को उससे बाहर निकाल देती है.'

आज हम पाते हैं कि साम्‍प्रदायिकता के नफ़रती विचार की यही कोशि‍श होती है कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आम भारतीयों के बीच फर्क की दीवार खड़ी की जाए. मज़हबी समूहों को सांस्‍कृतिक रूप में जुदा-जुदा साबित किया जाए. प्रेमचंद तो इसे दशकों पहले बखूबी समझ रहे थे. 15 जनवरी 1934 को छपी उनकी एक मशहूर टिप्‍पणी है- साम्प्रदायिकता और संस्कृति.

वे इसमें रेखांकित करते हैं- 'साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है. उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसलिए वह ... संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है. हिन्दू अपनी संस्कृति को कयामत तक सुरक्षित रखना चाहता है, मुसलमान अपनी संस्कृति को.

दोनों ही अभी तक अपनी-अपनी संस्कृति को अछूती समझ रहे हैं, यह भूल गए हैं, कि अब न कहीं मुसलिम संस्कृति है, न कहीं हिन्दू संस्कृति और न कोई अन्य संस्कृति.'

तो अब कौन सी संस्‍कृति है, वे जवाब देते हैं, 'अब संसार में केवल एक संस्कृति है, और वह है आर्थ‍िक...'

संस्‍कृति को धर्म से घालमेल करने की राजनीति पुरानी रही है. वे बहुत ही साफ़ तौर पर कहते हैं, 'संस्कृति का धर्म से कोई सम्बंध नहीं. आर्य संस्कृति है, ईरानी संस्कृति है, अरब संस्कृति है लेकिन ईसाई संस्कृति और मुसलिम या हिन्दू संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं है...'

प्रेमचंद हिन्‍दुओं और मुसलमानों को सांस्‍कृतिक रूप से अलग साबित करने के सारे तर्कों को बारी-बारी से बड़ी सहजता और तार्किक तरीके धराशायी करते हैं. वे भाषा का सवाल उठाते हैं और पूछते हैं कि 'तो क्या भाषा का अन्तर है?' उनका जवाब है, 'बिल्कुल नहीं. मुसलमान उर्दू को अपनी मिल्ली भाषा कह लें, मगर मदरासी मुसलमान के लिए उर्दू वैसी ही अपरिचित वस्तु है जैसे मदरासी हिन्दू के लिए संस्कृत.

हिन्दू या मुसलमान जिस प्रान्त में रहते हैं, सर्व-साधारण की भाषा बोलते हैं चाहे वह उर्दू हो या हिन्दी, बांग्ला हो या मराठी. बंगाली मुसलमान उसी तरह उर्दू नहीं बोल सकता और न समझ सकता है, जिस तरह बंगाली हिन्दू. दोनों एक ही भाषा बोलते हैं.

Wednesday, July 24, 2019

Выжить на $100 000 в месяц. Бежавшего в Лондон банкира Беджамова

Беглый российский банкир Георгий Беджамов привык жить на широкую ногу, однако пришло время быть скромнее. Так решил лондонский судья и ограничил траты экс-акционера лопнувшего Внешпромбанка суммой в 100 тысяч долларов в месяц.

Активы Беджамова заморожены в ожидании тяжбы с банком. Однако как всегда в таких случаях, суд разрешает тратить на личные нужды сумму, которая позволит человеку не менять образ жизни. Беджамов оценил ее в 100 тысяч долларов в неделю. Судья не согласился и подробно описал, почему.

Внешпромбанк судится с Беджамовым в Лондоне в надежде взыскать пропавшие 1,8 млрд долларов. В банке держали деньги крупные бизнесмены, чиновники и их семьи, а также госорганы, и его крах в 2016 году оказался резонансным эпизодом "банковской чистки" в России.

Сестра Беджамова, экс-глава банка Лариса Маркус признала себя виновной в хищениях и получила 8,5 лет тюрьмы. Сам Беджамов сначала скрывался от следователей в Монако, а потом уехал в Великобританию, где попросил убежища. Он говорит, что ничего не похищал, а обвинения надуманные.

Решение судьи лондонского Высокого суда Милвина Джармана должно окрылить российских охотников за активами беглых банкиров и бизнесменов, осевших в Лондоне. Конкурсные управляющие фактически получили возможность портить им кровь, не дожидаясь завершения многолетних коммерческих тяжб и бесперспективных судов об экстрадиции. И заодно уберечь от растраты активы, на которые они в случае успеха хотят обратить взыскание.

С другой стороны, решение устанавливает новый золотой стандарт - примерную оценку стоимости жизни в Лондоне для усредненного российского предпринимателя.

Конечно, в каждом отдельном случае суд будет определять, какой образ жизни является привычным для человека, однако отправная точка не помешает. В этом деле все началось с 10 тысяч фунтов (12,5 тыс. долларов) в неделю плюс аренда квартиры - и сумма эта была взята из других подобных решений о заморозке активов. Позже Беджамов посчитал повнимательнее, понял, что не хватает, и попросил поднять лимит.

Thursday, July 4, 2019

Führende Scientologen gehören zu den aktivsten Immobilienplayern der Stadt

Die Scientology-nahe Swiss Immo Trust AG aus Kaiseraugst ist eine wichtige Akteurin auf dem Basler Immobilienmarkt. Dabei geht die Firma nicht gerade zimperlich vor.

Ein Firmengeflecht rund um die Swiss Immo Trust AG in Kaiseraugst war massgeblich an der Finanzierung der Scientology-Zentrale am Rande Basels beteiligt. Recherchen der TagesWoche zeigten, wie führende Personen in diesen Firmen mit ihren namhaften Spenden einen Grossteil des Sektentempels an der Burgfelderstrasse finanzierten.

Doch nicht nur innerhalb des Basler Ablegers von Scientology ist dieses Unternehmen eine relevante Grösse. Wie unsere Datenauswertung zeigt, gehört die Swiss Immo Trust zu den wichtigsten Akteuren im Geschäft der Umwandlung von Mietwohnungen in Stockwerkeigentum.

Die TagesWoche hat die im Kantonsblatt publizierten Handänderungen auf dem Basler Immobilienmarkt seit Mitte 2008 ausgewertet. Eine solche Transaktion beschreibt den Verkauf einer Immobilie. Naturgemäss geschieht dies bei der Umwandlung in Stockwerkeigentum in relativ kurzer Zeit gleich mehrfach. Ein Unternehmen kauft eine Liegenschaft auf, renoviert oder baut neu und bringt die Wohnungen daraufhin einzeln auf den Markt. Statt einem einzelnen Eigentümer gibt es nun viele verschiedene.

Umstrittenes Business
Dieses Business gilt deshalb als umstritten, weil dadurch sehr oft günstiger Wohnraum verloren geht. Bevor die Umwandlung in Wohneigentum möglich ist, müssen die bisherigen Mieter nämlich weichen.

Zwischen 2010 und 2014 war die Swiss Immo Trust an über 50 solcher Handänderungen beteiligt. Bei 43 davon ging es um Stockwerkeigentum, verteilt auf insgesamt fünf Bauprojekte. Die Liegenschaften befinden sich allesamt im Gebiet zwischen Schützenmatt- und Kannenfeldpark. Bei all diesen Projekten immer mit dabei: Rudolf Flösser, leitender Direktor von Scientology Basel.

Grösstes Projekt war die Überbauung zwischen der Türkheimerstrasse und dem Spalenring. Dort kaufte die Swiss Immo Trust zwei ältere Liegenschaften auf, um sie durch einen Neubau mit 21 Eigentumswohnungen zu ersetzen.

Das Projekt an der Türkheimerstrasse wurde von der
BW-Liegenschaftsverwaltung geleitet, die sich ebenfalls in den Händen einer Scientologin befindet.

Dies Leitung dieses Projekts oblag der BW-Liegenschaftsverwaltung GmbH, einer Firma von Brigitte Widmer – Scientologin und potente Spenderin für den Bau der Sektenzentrale. Die Wohnungen waren zuvor sehr günstig, eine 3-Zimmer-Wohnung kostete weniger als 1000 Franken.

Das Geschäft ging nicht reibungslos über die Bühne, weil sich einige der verbliebenen Mieter gegen ihre Kündigungen wehrten. Darunter zwei Gewerbler, eine Druckerei und ein Malergeschäft. Diese suchten Hilfe beim Mieterverband und erhoben Einsprache.

Eine erste Kündigung, ausgesprochen durch die Firma BW-Immobilientreuhand, ebenfalls aus dem Umkreis der Scientology, erfolgte zur Unzeit und wurde deshalb für ungültig erklärt. Das Bauprojekt in seiner ersten Version (hauptsächlich 1- und 2-Zimmer-Wohnungen) hielt der gerichtlichen Prüfung ebenso wenig stand und wurde für untauglich befunden. Die Mieter durften ein Jahr länger bleiben.

Nachträgliche Kosten
Unangenehm aufgefallen ist die Swiss Immo Trust auch auf dem Land. 2008 berichtete etwa der «Blick» von einer Überbauung in Therwil. Dort wurde sämtlichen 28 Mietparteien wegen Sanierungsbedarf gekündigt – ihre Wohnungen wurden danach während der Euro 08 aber für mehr als 400 Franken pro Tag an Fussballfans zwischenvermietet.

In einem anderen Fall in Oberwil kam es zwischen dem Unternehmen und
26 Käuferparteien von Eigentumswohnungen zu einem Streit wegen einer Rechnung von 600’000 Franken. Die Swiss Immo Trust wollte diese Anschlussgebühr für Wasser und Kanalisation nachträglich auf die Käufer überwälzen.

Diese gingen jedoch davon aus, dass diese Gebühren bereits im Kaufpreis enthalten gewesen waren. Erst nachdem wiederum die BaZ recherchiert hatte, zeigte sich die Swiss Immo Trust einsichtig und verzichtete auf die Forderung.