Tuesday, November 12, 2019

गुरुनानक देव का प्रकाश पर्व- ननकाना साहिब से लेकर करतारपुर तक

सिख धर्म के संस्थापक और सिखों के पहले गुरू गुरुनानक देव की 550वीं जयंती के मौके पर भारत से लेकर पाकिस्तान तक प्रकाश पर्व मनाया जा रहा है.

गुरुनानक देव जी को मुस्लिम समुदाय भी फ़कीर के तौर पर पूजता है. ऐसे में गुरु नानक देव को एक गुरू के तौर पर देखा जाता है. जिन्हें मानने वाले किसी एक धर्म के ही लोग शामिल नहीं हैं.

प्रकाश पर्व का आयोजन हर साल किया जाता है लेकिन ये प्रकाश पर्व कुछ ख़ास है और इसका सबसे बड़ा कारण है कि भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर को खोल दिया गया है. वो जगह जहां गुरुनानक देव ने अपने आखिऱी 18 साल गुज़ारे थे.

नौ नवंबर को भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान की ओर से प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया. हालांकि पहले जत्थे में वीवीआईपी ही शामिल थे लेकिन उस दिन के बाद से आम लोग भी करतारपुर के दर्शन के लिए जा रहे हैं.

उनके प्रकाश पर्व पर उम्मीद की जा रही है कि लोग बड़ी संख्या में यहां जमा होंगे. लेकिन अगर गुरुनानक देव जी के जीवन को तीन चरणों में बांटे तो उनके जन्मस्थान ननकानासहिब (पाकिस्तान), सुल्तानपुर लोधी (भारत) और करतारपुर शहरों का ख़ास महत्व है.

सिख श्रद्दालु हर साल यहां हज़ारों की संख्या में दर्शन करते आते हैं . ख़ासतौर पर प्रकाश-पर्व के मौक़े पर और इस बार तो यह और भी ख़ास है. हालांकि बीबीसी के सहयोगी रविंदर सिंह रॉबिन कहते हैं कि जिस तरह हम सिल्वर जुबली, गोल्डन जुबली मनाते हैं यह 550वां प्रकाश पर्व वैसा ही है. संख्या को महत्व दिया जा सकता है लेकिन सच्चाई यही है कि गुरुनानक के प्रकास पर्व को हर साल, हर सिख इतनी ही शिद्दत से मनाता आया है.

वो कहते हैं, "रौनक ही अलग है यहां की. हज़ारों की संख्या में लोग जमा हुए हैं. सिख यहां अल्पसंख्यक हैं लेकिन अगर सड़कों पर से गुज़रें तो लगता है कि सिख बहुत जगह से होकर जा रहे हैं."

अली के मुताबिक़ पूरी दुनिया से हज़ारों की संख्या में लोग आए हुए. कई तो ऐसे हैं जो हफ़्तों से यहां के होटलों और टेंट में रह रहे हैं.

अली के मुताबिक़, गुरुनानक का प्रकाश पर्व यहां के लोगों के लिए बहुत अहमियत रखता है और चूंकि 550वां प्रकाश पर्व है तो जुलूस निकालने की व्यवस्था की गई है. यह जुलूस मुख्य गुरुद्वारे से होता हुआ शहर में मौजूद छह अन्य गुरुद्वारों से होता हुआ आगे बढ़ेगा.

ये सभी गुरुद्वारे गुरुनानक देव के बचपन की प्रमुख यादों और संदेशों को याद करते हुए निर्मित किये गए हैं.

ननकाना साहिब में इस पर्व की तैयारियां पिछले एक हफ़्ते से चल रही हैं.

अली बताते हैं कि यूं तो हर साल ही लोग इस मौक़े पर ननकानासाहिब आते हैं लेकिन निश्चित तौर पर इस बार यह संख्या अधिक है. अली इसका एक बड़ा कारण करतारपुर कॉरिडोर के खुलने को भी मानते हैं.

अगर इस गुरुनानक देव के जीवन का दूसरा ख़ास स्थान कहें तो ग़लत नहीं होगा. भारत में मौजूद इस जगह पर उन्होंने क़रीब 14-15 साल बिताए.

बेबे नानकी के घर का कुआँ आज भी चलताऊ है. पहली मंजिल पर गुरु ग्रंथ साहिब प्रकाशित है और एक संग्रहालय है. गुरु नानक की बहन अपने पति जय राम जी के साथ यहां रहती थी.

Tuesday, September 17, 2019

Актеры устроили флешмоб в поддержку осужденного Павла Устинова

Российские актеры устроили флешмоб, чтобы поддержать своего коллегу Павла Устинова, которого Тверской суд накануне признал виновным в применении насилия к полицейскому и приговорил к 3,5 годам колонии. Видео в его поддержку уже записали Александр Паль, Никита Кукушкин, Никита Ефремов и другие.

23-летний Павел Устинов - начинающий актер. Он закончил Высшую школу сценических искусств, снимался в сериале "Трейдер" и фильме Федора Бондарчука "Пассажир".

3 августа его задержали на Пушкинской в Москве во время проведения там акции протеста, а позже обвинили в применении насилия к сотруднику Росгвардии. По версии следствия, во время задержания Устинов оказывал активное сопротивление задерживающему его омоновцу и вывихнул ему плечо.

Сам Устинов не признал вину и настаивал на том, что не участвовал в акции протеста, а ждал друга: "Я стоял в стороне, в одной руке у меня был телефон, в другой наушники, меня заломили, начали бить специальными средствами, я не сопротивлялся ни разу".

Флешмоб в поддержку Устинова начал актер Александр Паль.

"На видео задержания прекрасно видно, что Паша не оказывал сопротивления сотрудникам Росгвардии, ОМОНа и полиции, что он не выкрикивал лозунги. И самое главное, что это видео в суде не рассматривалось как доказательство. Я думаю, что это полностью сфабрикованное дело. Я думаю, что это абсолютный произвол и самосуд. Я думаю, что мы должны обратить внимание властей на то, что произошел очередной самосуд и произвол", - сказал он на видео, которое опубликовал в своем "Инстаграме".

Флешмоб поддержал актер Никита Ефремов. "У меня в памяти еще свежо дело Ивана Голунова, и вызывает восхищение, как журналистский цех объединился. Мне кажется, мы тоже так можем", - сказал он.

Также видео в поддержку Устинова опубликовала актриса Анна Чиповская в своих "сторис" в "Инстаграме".

"Мне страшно, когда такое происходит. Мне страшно физически. Мне страшно, что молодой человек 24 лет не способен доказать в суде свою правоту, так как суд эту видеозапись во внимание не принимает. Меня это удивляет и пугает", - сказала она.

Актер Никита Кукушкин в своем видео призвал коллег не принимать участие в пропагандистских проектах и не сотрудничать с властями. Он также призвал всех прийти в Мосгорсуд на апелляцию Устинова.

"Я как и прежде предлагаю вам не сотрудничать с кинокомпаниями, продюсерами, режиссерами, которые предлагают вам откровенно пропагандистские проекты. Точно так же не играть в спектаклях и не ставить спектакли в театрах, которые выдаются режиссерам только по причине того, что они высказывают некую лояльность власти. Потому как мы своим талантом и энергией питаем эту систему", - сказал актер.

Wednesday, August 28, 2019

Ванильное мороженое, полеты в космос и Су-57: что Россия предложила Эрдогану

Президент Турции Реджеп Тайип Эрдоган посетил российский авиасалон МАКС в подмосковном Жуковском, где ему сделали немало предложений, в том числе весьма дорогостоящих. Что же предлагали турецкому лидеру и чем заинтересовался он сам?

Во время экскурсии по авиасалону Эрдоган проявил интерес к покупке новейшего российского истребителя пятого поколения Су-57.

"Это Су-57? А он уже летает?" - спросил Эрдоган у президента России Владимира Путина во время осмотра машины. "Летает", - ответил тот. "А его можно купить?" - продолжил интересоваться Эрдоган. "Можете купить", - сказал Путин и засмеялся.

Позднее на пресс-конференции Путин сообщил, что Россия готова организовать для турецких летчиков полеты на истребителях Су-30СМ.

Вице-премьер Юрий Борисов также сообщил, что Турция демонстрирует неподдельный интерес к российским истребителям Су-35.

При этом министр промышленности и торговли России Денис Мантуров подчеркнул, что Турция пока лишь знакомится с российской боевой авиацией, о покупках говорить пока рано.

Глава госкорпорации "Роскосмос" Дмитрий Рогозин предложил Эрдогану организовать отправку на МКС турецкого астронавта.

"У нас есть предложение к вам совместное - к юбилею республики организовать полет турецкого астронавта на орбиту. Центр подготовки космонавтов готов к этой работе", - сказал Рогозин.

Турецкий лидер тут же согласился и заявил, что готов присоединиться к "священной работе".

Путин сообщил, что во вторник была осуществлена поставка еще одной партии зенитно-ракетных комплексов С-400 по контракту с Турцией. В минобороны Турции заявили, что весь процесс передачи ЗРС займет около месяца.

По словам генерального директора концерна "Алмаз-Антей" Яна Новикова, 1 сентября начнется обучение турецких военных управлению С-400, оно должно продлиться до 2 января следующего года.

Как подчеркнул Эрдоган, вокруг поставок С-400 было "очень много сплетен", однако турецкие власти "не обращали на них ни малейшего внимания".

"Наша солидарность в этой области - мы хотим распространить ее на все остальные сферы оборонной промышленности. Также это может быть и по военным самолетам", - добавил он.

Российская сторона в свою очередь отметила, что готова предложить дальнейшие поставки С-400 после завершения поставок первой партии.

Tuesday, August 20, 2019

तस्वीरों में महसूस कीजिए कश्मीरियों के दर्द

महिला फ़ोटोग्राफ़र अवनि राय बताती हैं कि कश्मीर की वजह से ही वो फ़ोटोग्राफ़र बनी हैं.

कश्मीर का उन पर इतना असर है कि वह साल के आठ से नौ महीने कश्मीर में बिताती रही हैं, हालांकि वह पहली बार कश्मीर 2014 में ही गई थीं.

इन चार-पांच सालों में उन्होंने कश्मीरी लोगों की ज़िन्दगी और उनके कई पहलुओं को कैमरे में क़ैद करने की कोशिश की हैं.

इतने सालों से कश्मीर में ईद मनाने वाली अवनि राय को दुःख है की भारतीय संविधान से 370 और 35A के ख़त्म होने के बाद कश्मीर में जो हालात पैदा हुए, उस कारण वो ईद में वहां नहीं जा पाईं. इसका उन्हें बेहद दुख है.

कश्मीर के बारे में एक किताब पर काम कर रही अवनि वहां की जनता को समझती हैं, इसलिए उनकी तकलीफ़ों और दुख पर भारतीयों का ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्होंने एक ख़ास फ़ोटो प्रदर्शनी का आयोजन किया है, जिसमें कश्मीरियों की रोज़मर्रा की ज़िन्दगी की झलकियां मिलती हैं.

अवनि राय की यह फोटो प्रदर्शनी दक्षिण मुंबई के काला घोड़ा में स्थित मैथड आर्ट स्पेस में लगाई गई है.

अवनि कहती है, "ये कहना ग़लत नहीं होगा कि मेरे काम का कश्मीर में चल रही राजनैतिक हलचल से कोई लेना-देना नहीं है. पर में सरल भाषा में कहना चाहूंगी की मेरी प्रदर्शनी चिंता है कश्मीरी लोगों के लम्बे दर्द और पीड़ा की, जिसकी आवाज़ सीमा और असमंजस भविष्य में दबी हुई है."

अवनि कहती हैं, "जहां रोज़ के रक्तपात और कलह के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच एक होड़ लगी हुई है, वहां कश्मीरी लोगों की दुख भरी कहानियां दब जाती हैं. कश्मीरी बच्चे और औरतें जिस सदमे में हैं, वो न्यायसंगत नहीं है."

"आज फ़ोन सेवा बंद है. जो भी आवाज़ें सुनाई दे रही हैं, वो श्रीनगर से आ रही हैं, जहाँ पत्रकार हैं. उत्तर में उरी और दक्षिण में पुलवामा से कोई आवाज़ नहीं आ रही है.अंदरुनी कश्मीर घाटी से जो भी आवाज़ें आ रही हैं, वो चोरी छुपे सावधानी से पेन ड्राइव के ज़रिये आ रही हैं."

अवनि का कहना है कि भारत अपना 73वां स्वतंत्रता का जश्न मना रहा है पर उनकी प्रदर्शनी की एक ही दलील है कश्मीरी लोगो की तरफ़ से कि उन्हें अपने विचार रखने दें."

प्रदर्शनी में लगाई गईं तस्वीरों में ऊपर की यह तस्वीर अवनि के दिल के काफी क़रीब है. इस तस्वीर में एक बच्चा प्लेन क्रैश की सर्किट हाथ में लिए खड़ा है. बच्चे की उम्र 12-13 साल होगी.

Wednesday, July 31, 2019

सांप्रदायिकता और संस्कृति के घालमेल पर क्या कहते थे प्रेमचंद

'साहित्‍यकार का लक्ष्‍य केवल महफिल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना नहीं है- उसका दरजा इतना न गिराइये. वह देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सचाई भी नहीं, बल्कि उनके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सचाई है.'

139 साल पहले 31 जुलाई को धनपत राय पैदा हुए थे. हम उन्‍हें प्रेमचंद के नाम से जानते और याद करते हैं. जी, मशहूर साहित्‍यकार, कलम का सिपाही प्रेमचंद! उनकी मौत भी 83 साल पहले हो चुकी है. यानी, कुल जमा 56 साल की उम्र पायी. ऊपर की लाइनें उन्‍हीं की हैं. 1936 की.

एक नज़र में लग सकता है कि आठ दशक पहले जो शख्‍़स इस दुनिया से जा चुका है, उसे याद करना महज़ एक रस्‍म अदायगी ही है.... क्‍योंकि जब वे लिख रहे थे तो देश गुलाम था. आज़ादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी. नया भारत बनाने के ढेरों ख्‍वाब थे. उस वक्त की समाजी- सियासी ज़रूरत कुछ और ही रही होगी.

चुनौतियाँ भी एकदम अलग थीं. हाँ, इतना ज़रूर है कि उनकी लिखी बातें उस वक्त को समझने के लिए ज़रूर कारग़र होंगी. मगर रचनाओं का जो भंडार वे जमा कर गए, अगर उन पर नज़र दौड़ाई जाए तो वे आज भी ज़िंदगी और समाज को समझने में निहायत मददगार है. इसलिए प्रेमचंद को याद करना, महज एक सालाना रस्‍म पूरा करना नहीं है.

आज़ादी के बाद हमने अनेक समाजी काम अधूरे छोड़े. इसलिए सत्तर साल बाद भी ऐसे ढेरों सवालों से हम हर रोज़ टकरा रहे हैं, जो सवाल मुल्क के सामने आज़ादी से पहले भी दरपेश थे. प्रेमचंद के दौर में भी फिरकापरस्ती यानी साम्प्रदायिकता, नफ़रत फैलाने और देशवासियों बाँटने का काम कर रही थी.

आज़ादी के आंदोलन की पहली पाँत के लीडरों की तरह ही प्रेमचंद का मानना था कि स्वराज के रास्‍ते में साम्‍प्रदायिक नफ़रत बहुत बड़ी बाधा है. इस सवाल के इर्द-गि‍र्द उनकी कई टिप्‍पणि‍याँ हैं. 1934 में एक लेख में प्रेमचंद कहते हैं कि 'हम तो साम्‍प्रदायिकता को समाज का कोढ़ समझते हैं जो ... अपना छोटा सा दायरा बना सभी को उससे बाहर निकाल देती है.'

आज हम पाते हैं कि साम्‍प्रदायिकता के नफ़रती विचार की यही कोशि‍श होती है कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में आम भारतीयों के बीच फर्क की दीवार खड़ी की जाए. मज़हबी समूहों को सांस्‍कृतिक रूप में जुदा-जुदा साबित किया जाए. प्रेमचंद तो इसे दशकों पहले बखूबी समझ रहे थे. 15 जनवरी 1934 को छपी उनकी एक मशहूर टिप्‍पणी है- साम्प्रदायिकता और संस्कृति.

वे इसमें रेखांकित करते हैं- 'साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है. उसे अपने असली रूप में निकलते शायद लज्जा आती है, इसलिए वह ... संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है. हिन्दू अपनी संस्कृति को कयामत तक सुरक्षित रखना चाहता है, मुसलमान अपनी संस्कृति को.

दोनों ही अभी तक अपनी-अपनी संस्कृति को अछूती समझ रहे हैं, यह भूल गए हैं, कि अब न कहीं मुसलिम संस्कृति है, न कहीं हिन्दू संस्कृति और न कोई अन्य संस्कृति.'

तो अब कौन सी संस्‍कृति है, वे जवाब देते हैं, 'अब संसार में केवल एक संस्कृति है, और वह है आर्थ‍िक...'

संस्‍कृति को धर्म से घालमेल करने की राजनीति पुरानी रही है. वे बहुत ही साफ़ तौर पर कहते हैं, 'संस्कृति का धर्म से कोई सम्बंध नहीं. आर्य संस्कृति है, ईरानी संस्कृति है, अरब संस्कृति है लेकिन ईसाई संस्कृति और मुसलिम या हिन्दू संस्कृति नाम की कोई चीज नहीं है...'

प्रेमचंद हिन्‍दुओं और मुसलमानों को सांस्‍कृतिक रूप से अलग साबित करने के सारे तर्कों को बारी-बारी से बड़ी सहजता और तार्किक तरीके धराशायी करते हैं. वे भाषा का सवाल उठाते हैं और पूछते हैं कि 'तो क्या भाषा का अन्तर है?' उनका जवाब है, 'बिल्कुल नहीं. मुसलमान उर्दू को अपनी मिल्ली भाषा कह लें, मगर मदरासी मुसलमान के लिए उर्दू वैसी ही अपरिचित वस्तु है जैसे मदरासी हिन्दू के लिए संस्कृत.

हिन्दू या मुसलमान जिस प्रान्त में रहते हैं, सर्व-साधारण की भाषा बोलते हैं चाहे वह उर्दू हो या हिन्दी, बांग्ला हो या मराठी. बंगाली मुसलमान उसी तरह उर्दू नहीं बोल सकता और न समझ सकता है, जिस तरह बंगाली हिन्दू. दोनों एक ही भाषा बोलते हैं.

Wednesday, July 24, 2019

Выжить на $100 000 в месяц. Бежавшего в Лондон банкира Беджамова

Беглый российский банкир Георгий Беджамов привык жить на широкую ногу, однако пришло время быть скромнее. Так решил лондонский судья и ограничил траты экс-акционера лопнувшего Внешпромбанка суммой в 100 тысяч долларов в месяц.

Активы Беджамова заморожены в ожидании тяжбы с банком. Однако как всегда в таких случаях, суд разрешает тратить на личные нужды сумму, которая позволит человеку не менять образ жизни. Беджамов оценил ее в 100 тысяч долларов в неделю. Судья не согласился и подробно описал, почему.

Внешпромбанк судится с Беджамовым в Лондоне в надежде взыскать пропавшие 1,8 млрд долларов. В банке держали деньги крупные бизнесмены, чиновники и их семьи, а также госорганы, и его крах в 2016 году оказался резонансным эпизодом "банковской чистки" в России.

Сестра Беджамова, экс-глава банка Лариса Маркус признала себя виновной в хищениях и получила 8,5 лет тюрьмы. Сам Беджамов сначала скрывался от следователей в Монако, а потом уехал в Великобританию, где попросил убежища. Он говорит, что ничего не похищал, а обвинения надуманные.

Решение судьи лондонского Высокого суда Милвина Джармана должно окрылить российских охотников за активами беглых банкиров и бизнесменов, осевших в Лондоне. Конкурсные управляющие фактически получили возможность портить им кровь, не дожидаясь завершения многолетних коммерческих тяжб и бесперспективных судов об экстрадиции. И заодно уберечь от растраты активы, на которые они в случае успеха хотят обратить взыскание.

С другой стороны, решение устанавливает новый золотой стандарт - примерную оценку стоимости жизни в Лондоне для усредненного российского предпринимателя.

Конечно, в каждом отдельном случае суд будет определять, какой образ жизни является привычным для человека, однако отправная точка не помешает. В этом деле все началось с 10 тысяч фунтов (12,5 тыс. долларов) в неделю плюс аренда квартиры - и сумма эта была взята из других подобных решений о заморозке активов. Позже Беджамов посчитал повнимательнее, понял, что не хватает, и попросил поднять лимит.

Thursday, July 4, 2019

Führende Scientologen gehören zu den aktivsten Immobilienplayern der Stadt

Die Scientology-nahe Swiss Immo Trust AG aus Kaiseraugst ist eine wichtige Akteurin auf dem Basler Immobilienmarkt. Dabei geht die Firma nicht gerade zimperlich vor.

Ein Firmengeflecht rund um die Swiss Immo Trust AG in Kaiseraugst war massgeblich an der Finanzierung der Scientology-Zentrale am Rande Basels beteiligt. Recherchen der TagesWoche zeigten, wie führende Personen in diesen Firmen mit ihren namhaften Spenden einen Grossteil des Sektentempels an der Burgfelderstrasse finanzierten.

Doch nicht nur innerhalb des Basler Ablegers von Scientology ist dieses Unternehmen eine relevante Grösse. Wie unsere Datenauswertung zeigt, gehört die Swiss Immo Trust zu den wichtigsten Akteuren im Geschäft der Umwandlung von Mietwohnungen in Stockwerkeigentum.

Die TagesWoche hat die im Kantonsblatt publizierten Handänderungen auf dem Basler Immobilienmarkt seit Mitte 2008 ausgewertet. Eine solche Transaktion beschreibt den Verkauf einer Immobilie. Naturgemäss geschieht dies bei der Umwandlung in Stockwerkeigentum in relativ kurzer Zeit gleich mehrfach. Ein Unternehmen kauft eine Liegenschaft auf, renoviert oder baut neu und bringt die Wohnungen daraufhin einzeln auf den Markt. Statt einem einzelnen Eigentümer gibt es nun viele verschiedene.

Umstrittenes Business
Dieses Business gilt deshalb als umstritten, weil dadurch sehr oft günstiger Wohnraum verloren geht. Bevor die Umwandlung in Wohneigentum möglich ist, müssen die bisherigen Mieter nämlich weichen.

Zwischen 2010 und 2014 war die Swiss Immo Trust an über 50 solcher Handänderungen beteiligt. Bei 43 davon ging es um Stockwerkeigentum, verteilt auf insgesamt fünf Bauprojekte. Die Liegenschaften befinden sich allesamt im Gebiet zwischen Schützenmatt- und Kannenfeldpark. Bei all diesen Projekten immer mit dabei: Rudolf Flösser, leitender Direktor von Scientology Basel.

Grösstes Projekt war die Überbauung zwischen der Türkheimerstrasse und dem Spalenring. Dort kaufte die Swiss Immo Trust zwei ältere Liegenschaften auf, um sie durch einen Neubau mit 21 Eigentumswohnungen zu ersetzen.

Das Projekt an der Türkheimerstrasse wurde von der
BW-Liegenschaftsverwaltung geleitet, die sich ebenfalls in den Händen einer Scientologin befindet.

Dies Leitung dieses Projekts oblag der BW-Liegenschaftsverwaltung GmbH, einer Firma von Brigitte Widmer – Scientologin und potente Spenderin für den Bau der Sektenzentrale. Die Wohnungen waren zuvor sehr günstig, eine 3-Zimmer-Wohnung kostete weniger als 1000 Franken.

Das Geschäft ging nicht reibungslos über die Bühne, weil sich einige der verbliebenen Mieter gegen ihre Kündigungen wehrten. Darunter zwei Gewerbler, eine Druckerei und ein Malergeschäft. Diese suchten Hilfe beim Mieterverband und erhoben Einsprache.

Eine erste Kündigung, ausgesprochen durch die Firma BW-Immobilientreuhand, ebenfalls aus dem Umkreis der Scientology, erfolgte zur Unzeit und wurde deshalb für ungültig erklärt. Das Bauprojekt in seiner ersten Version (hauptsächlich 1- und 2-Zimmer-Wohnungen) hielt der gerichtlichen Prüfung ebenso wenig stand und wurde für untauglich befunden. Die Mieter durften ein Jahr länger bleiben.

Nachträgliche Kosten
Unangenehm aufgefallen ist die Swiss Immo Trust auch auf dem Land. 2008 berichtete etwa der «Blick» von einer Überbauung in Therwil. Dort wurde sämtlichen 28 Mietparteien wegen Sanierungsbedarf gekündigt – ihre Wohnungen wurden danach während der Euro 08 aber für mehr als 400 Franken pro Tag an Fussballfans zwischenvermietet.

In einem anderen Fall in Oberwil kam es zwischen dem Unternehmen und
26 Käuferparteien von Eigentumswohnungen zu einem Streit wegen einer Rechnung von 600’000 Franken. Die Swiss Immo Trust wollte diese Anschlussgebühr für Wasser und Kanalisation nachträglich auf die Käufer überwälzen.

Diese gingen jedoch davon aus, dass diese Gebühren bereits im Kaufpreis enthalten gewesen waren. Erst nachdem wiederum die BaZ recherchiert hatte, zeigte sich die Swiss Immo Trust einsichtig und verzichtete auf die Forderung.

Tuesday, June 25, 2019

习近平:全党必须始终不忘初心牢记使命 在新时代把党的自我革命推向深入

  新华社北京6月25日电 中共中央政治局6月24日下午就“牢记初心使命,推进自我革命”举行第十五次集体学习。中共中央总书记习近平在主持学习时强调,我们党作为百年大党,如何永葆先进性和纯洁性、永葆青春活力,如何永远得到人民拥护和支持,如何实现长期执政,是我们必须回答好、解决好的一个根本性问题。我们党要求全党同志不忘初心、牢记使命,就是要提醒全党同志,党的初心和使命是党的性质宗旨、理想信念、奋斗目标的集中体现,越是长期执政,越不能忘记党的初心使命,越不能丧失自我革命精神,在新时代把党的自我革命推向深入,把党建设成为始终走在时代前列、人民衷心拥护、勇于自我革命、经得起各种风浪考验、朝气蓬勃的马克思主义执政党。

  中央党史和文献研究院研究员孙业礼同志就这个问题作了讲解,并谈了意见和建议。

  习近平在主持学习时发表了讲话。他首先表示,再过几天,就是我们党成立98周年了,我代表党中央,向全国广大党员致以节日的祝贺!

  习近平指出,安排这次中央政治局集体学习,目的是总结党的历史经验,结合新时代新要求,推动全党围绕守初心、担使命,找差距、抓落实切实搞好主题教育。这也是中央政治局带头开展主题教育的一项重要安排。中央政治局的同志要作好示范,在不忘初心、牢记使命上为全党作表率。

  习近平强调,我们党是用马克思主义武装起来的政党,始终把为中国人民谋幸福、为中华民族谋复兴作为自己的初心和使命,并一以贯之体现到党的全部奋斗之中。回顾党的历史,为什么我们党在那么弱小的情况下能够逐步发展壮大起来,在腥风血雨中能够一次次绝境重生,在攻坚克难中能够不断从胜利走向胜利,根本原因就在于不管是处于顺境还是逆境,我们党始终坚守为中国人民谋幸福、为中华民族谋复兴这个初心和使命,义无反顾向着这个目标前进,从而赢得了人民衷心拥护和坚定支持。中国特色社会主义进入新时代,我们比历史上任何时期都更接近、更有信心和能力实现中华民族伟大复兴。我们千万不能在一片喝彩声、赞扬声中丧失革命精神和斗志,逐渐陷入安于现状、不思进取、贪图享乐的状态,而是要牢记船到中流浪更急、人到半山路更陡,把不忘初心、牢记使命作为加强党的建设的永恒课题,作为全体党员、干部的终身课题。

  习近平强调,做到不忘初心、牢记使命,并不是一件容易的事情,必须有强烈的自我革命精神。今年是新中国成立70周年,我们党在全国执政也70年了。应该看到,在长期执政条件下,各种弱化党的先进性、损害党的纯洁性的因素无时不有,各种违背初心和使命、动摇党的根基的危险无处不在,“四大考验”、“四种危险”依然复杂严峻,如果不严加防范、及时整治,久而久之,必将积重难返,小问题就会变成大问题、小管涌就会沦为大塌方。党的自我革命任重而道远,决不能有停一停、歇一歇的想法。不忘初心、牢记使命要靠全党共同努力来实现,每一个党员、干部特别是领导干部必须常怀忧党之心、为党之责、强党之志,积极主动投身到这次主题教育中来。

  习近平指出,马克思主义是指导我们改造客观世界和主观世界的锐利思想武器。我们党在推进马克思主义中国化进程中,先后形成了毛泽东思想、邓小平理论、“三个代表”重要思想、科学发展观、新时代中国特色社会主义思想,为推进社会革命和自我革命提供了强大思想武器。我们党继承和发展马克思主义建党学说,形成了关于党的自我革命的丰富思想成果,如坚定理想信念,加强党性修养,从严管党治党,严肃党内政治生活,坚持经常性教育和集中性教育相结合,勇于开展批评和自我批评,加强党内监督,接受人民监督,不断纯洁党的思想、纯洁党的组织、纯洁党的作风、纯洁党的肌体,等等。这些都是推进党的自我革命的重要经验,在这次主题教育中要充分运用并不断发展。

  习近平强调,不忘初心、牢记使命,关键是要有正视问题的自觉和刀刃向内的勇气。要坚持问题导向,真刀真枪解决问题。这次主题教育列出的8个方面突出问题,都是可能动摇党的根基、阻碍党的事业的问题,必须以彻底的自我革命精神加以解决。对党内的一些突出问题,人民群众往往看得很清楚。党员、干部初心变没变、使命记得牢不牢,要由群众来评价、由实践来检验。我们不能关起门来搞自我革命,而要多听听人民群众意见,自觉接受人民群众监督。

  习近平指出,要坚持自我净化、自我完善、自我革新、自我提高,不断纯洁党的队伍,保证党的肌体健康;坚持补短板、强弱项、固根本,防源头、治苗头、打露头,堵塞制度漏洞,健全监督机制;勇于推进理论创新、实践创新、制度创新、文化创新以及各方面创新,通过革故鼎新不断开辟未来;自觉向书本学习、向实践学习、向人民群众学习,加强党性锻炼和政治历练,不断提升政治境界、思想境界、道德境界,全面增强执政本领,建设一支忠诚干净担当的高素质专业化干部队伍。

  习近平强调,牢记初心和使命,推进党的自我革命,要坚持加强党的集中统一领导和解决党内问题相统一,广大党员、干部特别是领导干部要敢于同一切弱化党的领导、动摇党的执政基础、违反党的政治纪律和政治规矩的行为作斗争,坚决克服党内存在的突出问题。要坚持守正和创新相统一,坚守党的性质宗旨、理想信念、初心使命不动摇,同时要以新的理念、思路、办法、手段解决好党内存在的各种矛盾和问题。要坚持严管和厚爱相统一,完善监督管理机制,捆住一些人乱作为的手脚,放开广大党员、干部担当作为、干事创业的手脚,把广大党员、干部的积极性、主动性、创造性充分激发出来,形成建功新时代、争创新业绩的浓厚氛围和生动局面。要坚持组织推动和个人主动相统一,既要靠各级党组织严格要求、严格教育、严格管理、严格监督,又要靠广大党员、干部自觉行动,主动检视自我,打扫身上的政治灰尘,不断增强政治免疫力。

  习近平指出,不忘初心、牢记使命,关键在党的各级领导干部特别是高级干部。领导干部要以上率下,带头深入学习新时代中国特色社会主义思想,带头增强“四个意识”、坚定“四个自信”、做到“两个维护”,带头不忘初心、牢记使命,带头运用批评和自我批评武器,带头坚持真理、修正错误。

Monday, June 17, 2019

Голунов в интервью Собчак рассказал, как его пытались посадить

Журналист "Медузы" Иван Голунов, которого обвинили в покушении на сбыт наркотиков, а затем освободили за недоказанностью вины, дал интервью Ксении Собчак для ее Youtube-блога.

Ключевые моменты из первого интервью Голунова после его освобождения - в пересказе Би-би-си.

О своем состоянии
Наверное, пока я находился под стражей, в какой-то момент отключилась рефлексия, переживания, я действовал по плану. Я думал: это та самая известная статья про подкидывание наркотиков, по которой осужден брат моего коллеги. Я понимал, что мне подбросили наркотики, но не понимал, что это про меня.

Когда я был освобожден, уже появились разные вопросы касаемо безопасности. Нужно поменять замки, первые две ночи я провел у знакомых. Мне комфортно, но я опасаюсь, у близких случались панические атаки, связанные с темой безопасности.

Наркотики ведь откуда-то взялись, я подавал жалобы на сотрудников полиции, но я не знаю, в каком они статусе. Двое генералов уволены, но я не понимаю, что еще может произойти.

В конце апреля мы с друзьями возвращались с 20-летия журнала Forbes, и они заметили, что за нами полтора километра шел какой-то человек.

Друзья заметили, а я не заметил, хотя у меня был опыт, когда я вычислял слежку. Это не паранойя, потом находились подтверждения.

Мне казалось, что я более-менее внимательно себя веду. После задержания я смотрел, чтобы никто ничего в карман не подложил. Но каким-то образом наркотики, которые называются "соль", оказались у меня в рюкзаке. Как это произошло, у меня представления нет.

Я люблю пользоваться порталом "Наш город". Я шел и увидел помятый дорожный знак, сфотографировал его и положил телефон в карман, чтобы потом отправить жалобу. Прошло буквально 15 секунд, раздался крик "стоять!". Я обернулся и увидел двух бегущих людей в гражданской одежде. Первая мысль - это какой-то гоп-стоп.

Они подскочили ко мне, закрутили руки, надели наручники и стали требовать пароль от телефона. Я отказался, они засунули телефон обратно мне в штаны, подъехала машина, меня начали в нее запихивать. Мне сказали: "Вы задержаны, уголовный розыск".

Я просил сообщить о задержании моим родным и близким, в машине показали удостоверения. Мы проехали где-то 150 метров, в машину сел понятой. Я ехал в куртке, с рюкзаком за спиной и в наручниках, было довольно неудобно.

На вопрос, почему меня везут в ЗАО, оперативники сказали: "Мы можем работать, где угодно".

Второго понятого нашли еще через 30 минут, откуда-то он взялся. Один сотрудник увидел, что понятой в медицинской маске, и говорит: "Привет, Серега! Ты что, болеешь?" Я говорю: "В смысле? Вы знакомы?" Оперативник отвечает: "Нет, я просто увидел, как его зовут [в документах], решил поинтересоваться, чего такого?"

Голунов был задержан 6 июня в центре Москвы. В полиции заявили, что при досмотре у него нашли пять пакетов с мефедроном, а при обыске дома - более пяти граммов кокаина и электронные весы. 8 июня Никулинский суд Москвы отправил Голунова под домашний арест по обвинению в покушении на сбыт наркотиков в крупном размере.

Задержание журналиста вызвало широкое общественное возмущение - за Ивана Голунова вступились не только коллеги, в том числе с федеральных телеканалов, но и политики и артисты.

11 июня министр внутренних дел России Владимир Колокольцев сообщил, что дело Голунова закрыто "из-за недоказанности его причастности к совершению преступления". В тот же день он вышел на свободу.

13 июня президент России Владимир Путин подписал указ об увольнении двух генералов полиции - начальника УВД по Западному административному округу Москвы Андрея Пучкова и начальника управления по контролю за оборотом наркотиков главного управления МВД по Москве Юрия Девяткина.

Я сразу говорил, что мне нужен адвокат, что нужно сообщить родным. Мне говорили: "Нет, тебе не положено, ты вообще еще не задержан!" Потом они игнорировали эти просьбы. Когда они поняли, что на любой вопрос я отвечаю, что буду говорить только в присутствии адвоката, сказали, что будет принудительный досмотр.

Я сказал, что не буду ничего сам делать, на меня пошел человек, который был старшим - Денис Коновалов. Он начал сдирать с меня куртку, зажав меня в угол. Тут я понял, что, наверное, сопротивление бессмысленно. Мне расстегнули наручники, я снял куртку с рюкзаком, положил их на стул. Меня попросили раздеться догола, спустить трусы до колен, нагнуться

Thursday, May 30, 2019

В студенческое ток-шоу в ВШЭ позвали соратницу Навального. А затем решили закрыть весь проект

Высшая школа экономики отменила запись учебного ток-шоу "В точку. Персона", куда студенты пригласили кандидата в депутаты Мосгордумы, соратницу Алексея Навального Любовь Соболь. Руководство учебного заведения объяснило это принципом "университет вне политики", хотя проректор ВШЭ Валерия Касамара сама будет кандидатом в депутаты Мосгордумы, как и Соболь.

Ток-шоу "В точку. Персона" - учебный проект студентов ВШЭ, который уже около трех лет проходит на факультете коммуникаций, медиа и дизайна. Раньше гостями программы становились пресс-секретарь президента Дмитрий Песков, кандидат в президенты Павел Грудинин, глава "Спид.Центра" Антон Красовский, другие медийные личности и журналисты.

О том, что программа отменена, сообщила сама Соболь в своем "Твиттере" 29 мая. Она рассказала Русской службе Би-би-си, что еще 17 мая с ней связался продюсер и позвал принять участие в программе. Они договорились, что шоу с ее участием пройдет 30 мая. 29 мая продюсер сообщил, что руководство факультета приняло решение отменить выпуск с Соболь и закрыть проект ток-шоу.

"Руководство нам не объясняло причин, сообщили о закрытии, на этом все", - подтвердила Би-би-си шеф-редактор шоу Виолетта Полудюк. Руководитель проекта Сергей Корзун сказал "МБХ медиа", что ток-шоу закрывается на время сессии и летних каникул.

О том, что ток-шоу будет закрыто, студентам было объявлено за несколько дней до программы с Соболь. Причин студентам не называли и попросили не общаться с прессой до 3 июня - в этот день пройдет собрание команды ток-шоу с руководством факультета, рассказал Би-би-си один из студентов, принимающих участие в создании программы. Он попросил об анонимности, так как руководство факультета рекомендовало студентам воздержаться от комментариев до официальной встречи.

Ректор НИУ ВШЭ Ярослав Кузьминов заявил, что университет вообще не направлял Соболь официального приглашения на участие в ток-шоу. Старший директор по связям с общественностью ВШЭ Антон Назаров заявил, что приглашение Соболь - "ни с кем не согласованная инициатива некоторых студентов".

Но как говорит студент из команды создателей ток-шоу, каждый гость всегда обсуждается с руководителем образовательной программы "Медиакоммуникации" Сергеем Корзуном. По его словам, так же произошло и в этот раз: он был не против, чтобы пришла Соболь.

Корзун отказался давать комментарии Би-би-си по этому поводу.

Университет "вне политики"
Есть и другое объяснение, которое руководство университета дает по поводу инцидента. Ректор ВШЭ Ярослав Кузьминов сказал, что устав университета запрещает политическую деятельность в его стенах. "Приглашать политического деятеля, находящегося в активной кампании за избрание в Мосгордуму, было бы нарушением устава университета", - сказал Кузьминов (цитата по Интерфаксу).

"Избирательная кампания еще не началась, и поэтому нет никаких законодательных ограничений для журналистов. Я даже не уверена, что мы говорили бы про избирательную кампанию на этом шоу, потому что там студенты формируют вопросы. Может быть, меня бы спрашивали о том, как у меня получается совмещать работу с семьей. Я бы на разные темы могла поговорить и ответить", - сказала Соболь Би-би-си. Она назвала отмену ток-шоу с ее участием цензурой.

Решение о закрытии программы принял декан факультета коммуникаций, медиа и дизайна Андрей Быстрицкий, рассказал Би-би-си источник, близкий к руководству факультета. Он попросил об анонимности, так как не уполномочен комментировать этот вопрос в СМИ. По его словам, декан опасался, что Соболь будет говорить о своем выдвижении в Московскую городскую думу. Быстрицкий не ответил на вопрос, принял ли он лично решение о закрытии проекта.

"Решений принимать было не о чем, потому что никто из тех, кто ведет учебный процесс, ее не звал", - ответил он на вопрос Би-би-си.

Это не первый случай, когда руководство университета отменяет мероприятия с участием политиков, однако правило "университет вне политики" касается не всех деятелей.

Так, в январе 2018 года в ВШЭ была отменена публичная лекция сооснователя "Городских проектов", члена "Яблока" Максима Каца - якобы потому, что он агитировал за партию год назад.

В марте 2018 года на ток-шоу "В точку. Персона" пришел пресс-секретарь президента Дмитрий Песков. Он отвечал на вопросы студентов про Навального, трагедию в Кемерове и депутата Госдумы Леонида Слуцкого, которого несколько журналисток обвинили в домогательствах. После окончания ток-шоу Песков попросил руководство факультета удалить запись программы с ним. А в сентябре 2018 года в университете выступил с лекцией глава ЛДПР Владимир Жириновский, и его лекцию никто не отменял.

"Мы очень строго придерживаемся своего правила, что университет у нас "вне политики", поэтому, как вы видите, встреча с Владимиром Вольфовичем проводится тогда, когда в стране "откипели" все политические кампании. <...> С одной стороны, мы не допускаем прямой агитации и пропаганды, с другой стороны, мы всегда были открытой площадкой, на которую могли прийти люди разных политических взглядов и убеждений, чтобы представить свою политическую и экспертную позицию", - сказала после лекции Жириновского проректор ВШЭ Валерия Касамара.

Проректор-кандидат
Сама проректор ВШЭ Валерия Касамара, вероятнее всего, станет кандидатом на предстоящих выборах Мосгордумы и, скорее всего, ее кандидатура будет поддержана московскими властями. Она будет конкурировать с оппозиционером Ильей Яшиным, возглавляющим муниципальный округ Красносельский. Как писала "Медуза", Касамара была выбрана кандидатом в Мосгордуму в этом округе, так как она "нейтральный человек, не чуждый либеральных взглядов".

Ректор ВШЭ Ярослав Кузьминов - действующий депутат Мосгордумы и член центрального штаба Общероссийского народного фронта.

Любовь Соболь планирует выдвигаться по 43-му избирательному округу. Одновременно с ней о намерении баллотироваться в этом округе заявила учредитель фонда помощи хосписам "Вера" Нюта Федермессер. Сторонники Соболь утверждают, что она идет на выборы, чтобы оттянуть на себя голоса оппозиционно настроенных избирателей. Федермессер объясняла, что выдвигается по 43 округу, потому что там находится хоспис, в котором она работает.

Выборы в Московскую городскую думу пройдут в сентябре 2019 года. О своем решении участвовать в кампании объявили четыре соратника создателя Фонда борьбы с коррупцией Алексея Навального - Любовь Соболь, Илья Яшин, Иван Жданов и Константин Янкаускас.

Wednesday, May 22, 2019

六四30周年:美国外交官的“艰难抉择”

美国驻中国大使馆的一队人员飞奔到使馆大楼前的院子,把正在搭帐篷露营、一脸惊诧的孩子们转移到室内内。“完全出于巧合,当晚使馆计划了一项向使馆人员家属开放的童军活动,”当年的使馆政治部官员祈锦慕(James Keith)对BBC中文披露。原本是学习野外生存技巧的活动,竟差点变成了生死存亡的体验。

次日,使馆外再次响起砰砰声,但 这次并非枪声,而是抗议学生慌忙逃离广场、赶到美使馆要求避难的敲门声。时隔三十年,当时的情景在祈锦慕脑海中依然历历在目。经过诸多考量,使馆最终决定将这些学生拒之门外。“对于我来说,这是八九学运期间一连串艰难抉择中最难的一个,”祈锦慕说。

“八九”学生运动,由1989年4月15日胡耀邦之死而起。学生的悼念行动逐渐发展为表达民主政治与结社自由、反对腐败,控制通货膨胀与失业问题等的诉求。持续近两个月,席卷全国学运,终结于军人的武力血腥清场。6月3日夜晚至4日凌晨,枪声与喧哗声响彻北京城。从此,“六四”这个原本平凡无奇的日期,成为了中国历史上重要的节点,至今在中国大陆仍然是不可言说的敏感词。

“我们尝试向他们解释,使馆犹如汪洋中的一个小岛,如果我们让他们进门,这并非一个长期的解决方法,最终可能还是要把他们交出来,对他们来说是更大的风险。”

祈锦慕说,出于人道主义美国应该帮助这些学生,但鉴于学生和使馆面临的风险,使馆没有这样做。“如果使馆被当做反击目标,对中美关系的长期影响将很大。”

1989年是祈锦慕31年职业外交官生涯的头几年,其后,他成为美国国务院与白宫的对华政策重要推手,曾是主管中国事务的的副助理国务卿和国安会主任。

唯一的例外是方励之一家。祈锦慕解释说,他有受到特殊保护的必要。

方励之被六四学生领袖称为中国近代民主运动的启蒙者,当年则被当局称为幕后黑手。老布什总统1989年2月访问中国时,曾邀请方励之夫妇赴宴,但他们在路上被警察拦下。六四之后,方励之夫妇与次子在使馆内避难一年,才在北京的默许下离境。

学运被镇压后,美国一边强烈谴责暴力、断绝与中国的军事合作,另一边先后派出两位特使访华,维系中美关系。在一年后,美国无条件延续了中国享有的贸易最惠国待遇。老布什政府在六四后的对华政策因此被批评过于软弱。

当时美国驻中国大使馆官员施大伟(David Shear)说,六四之后,美国本可以更多地向中国施压和实施制裁。“制裁可以维持更久,或是对最惠国待遇增加附加条件。”当年,施大伟是使馆政治部的二秘,负责汇报中国内政。之后,他曾担任美国驻越南大使,在奥巴马时期是国防部亚太事务助理部长。

祈锦慕则指出,当时摆在美国面前,是短期和长期国家利益的冲突。美国一方面要谴责北京的暴行、捍卫人权的普世价值,另一方面又要思考日后如何跟一个有十多亿人口的中国相处,才能持续对华施加影响。

“使馆人员原本各有分工,但在那个春天,没有人在做他们的日常工作,”祈锦慕回忆说,“我们渐渐全都变成了报道中国政治的记者,骑着自行车在北京街头采访。”

施大伟两度跟随抗议学生从北京大学一路游行至广场,过程中采访他们:为什么上街?你的朋友们也参与抗议吗?你的家人支持你吗?你觉得会达到什么成果?

“我谨慎小心地选择采访对象,确保对方知道我是美国外交官,从而能权衡利弊决定是否与我交流。”施大伟有意与学生领袖保持距离,避免制造美国大使馆与学生领袖合谋的误解。“我不想增加他们的风险。”

从诸多采访中,他得到的印象是,学生要求共产党的执政更透明、民主,“我并不感觉到他们想要推翻共产党的政权。”

6月2日整夜、3日白天,施大伟都在街头收集情报。到了3日下午,他决定返回使馆歇息一下。在使馆区附近的建国门外,一队武装解放军出现在他眼前,他意识到,在这样一触即发的情势下,补眠是不可能的了。

3日晚到4日凌晨,施大伟和祈锦慕都身在使馆内,一方面,几乎不间断地向华盛顿报告更新信息;另一方面,与还在外头的同事保持联系。

是否允许使馆人员在外面继续观察,是当时的另外一个艰难抉择。

“就像记者一样,我们需要目击现场,我们又要保护他们的安全,”祈锦慕说。最终让部分人员留在街头,但与使馆保有紧密联系。

“大使请不执行报告工作的使馆人员留在家中。在天安门广场附近的使馆人员会告知他们遇到的美国人尽快离开。”4日凌晨3点,使馆发出的外交电报写道。

使馆人员和新闻记者在街头目睹的血腥场景,被记录在4日早上6时发出的外交电报中,第一时间回报给华盛顿。“我们没有死伤者的确切数字……我们预期最终死伤人数将很高。”

Thursday, April 25, 2019

بين كنيسة قلب لوزة السورية وكاتدرائية نوتردام 600 عام وكثير من الشبه

لا تقتصرأهمية كاتدرائية نوتردام على كونها تحفة معمارية وفنية، بل ما يمثله هذا الصرح المعماري من إرث ثقافي إنساني وبكونه هوية وذاكرة، يشكل لبنة في مسيرة بناء الحضارة الإنسانية التي تنتقل من جيل إلى جيل، عبر المكان والزمان.

تتميز الكاتدرائية بطرازها القوطي ذي الدعامات الطائرة والنوافذ العالية المدببة والنوافذ ذات شكل الزهرة. ولمعرفة التطور التاريخي للطرز المعمارية ينبغي العودة إلى أصولها والبدء من الفكرة الأولى التي نمت وتطوّرت إلى أن اتخذت شكلها الحالي الذي نلمسه في حاضرنا.

يتطلب ذلك العودة إلى الأصول المعمارية لطراز كاتدرائية نوتردام وتاريخ تطوره، إذ يعود لطبيعة المسيحية المبكرة نفسها التي ربطها المؤرخون بكونها ديانة مشرقية حيث بحثوا عن أصولها في الأراضي التي شهدت ولادتها ومراحل تطورها الأولى في فلسطين وسوريا.

نشأت العمارة المسيحية المبكرة وتطورت خلال القرون الأولى للمسيحية وحوت عدداً من الثقافات والطرز المعمارية الإقليمية في أوروبا والشرق الأوسط..

ففي الجزء الشرقي من الإمبراطورية البيزنطية والتي كانت تضم (اليونان، دول البلقان في جنوب شرق أوروبا، أنطاليا، سوريا، ومصر) اكتسبت العمارة الكنسية ملامح متطورة عن الكنيسة الرومانية وبدأت تأخذ شكلها المميز.

تتحدث المراجع عن أولى المباني المسيحية في العالم (الكنيسة المنزلية) والتي تحتضنها سوريا قرب مدينة دير الزور في موقع (دورا-أوروبوس).

وتتحدث أيضاً عن بدايات المسقط البازيليكي الذي اشتهرت به الكنائس المسيحية في العديد من الكنائس السورية، ومنها كنيسة القديس سمعان العمودي التي تعود لعام 473، ودير الراهب بحيرا في بصرى وكنيسة إزرع في محافظة درعا جنوب سوريا.

وتخص المراجع بالذكر كنيسة قلب لوزة جنوب شرق قرية قلب لوزة في محافظة إدلب في شمالي سوريا والتي تعود إلى ستينيات القرن الخامس الميلادي كأول كنيسة بازيليكية في سوريا.

وتعد كنائس المدن المنسية -كما هو مصطلح على تسميتها- في محافطتي حلب وادلب والتي تعود للقرنين الخامس والسادس الميلادي، أولى الكنائس في العالم، ويعد تصميمها أساساً لتصاميم الكنائس في العالم وأوروبا لمئات السنين اللاحقة.

تقـع كنيسة قلب لوزة ضمن بلدة قلب لوزة الأثرية في جبل باريشـا، وتبعد مسافة 50 كم شمالي مدينة إدلب، وتعد من أجمل الكنائس البيزنطية في سوريا.

ويعود تاريخها إلى القرن الخامس بينما يعود تاريخ بناء كنيسة "قرق بيزة" في المنطقة نفسها إلى عام 361 كأول كنيسة بيزنطية بنيت في سوريا.

تم تسجيل كنيسة قلب لوزة في لائحة التراث العالمي لليونيسكو عام 2011 كجزء من المدن المنسية السورية.

وجاء في الوصف التوضيحي للمدن المنسية السورية ومعالمها -ومن بينها كنيسة قلب لوزة- المقدم لليونيسكو لتسجيلها في قوائم التراث العالمي من ناحية خصائص الموقع والقيمة العالمية المتميزة له ما يلي: "من بين العديد من البقايا المعمارية، تشهد الكنائس والأديرة والمعالم الجنائزية وأماكن الحج على ولادة وتطور العالم المسيحي في ريف الشرق الأوسط.".

لقد تأثر بناء كنيسة قلب لوزة بقمة فن العمارة السورية القديمة، وسميت بقصر لوزة وأحياناً قلب لوزة أما المؤرخ الغزي فقد ذكرها باسم قلب لوزة، ولكن بعض الباحثين أطلقوا عليها تسمية كاتدرائية.

معمارياً، كان تصميم مسقط كنيسة قلب لوزة يتخذ الشكل البازيليكي بعناصره الرئيسية الثلاثة: الصحن والجناح الرئيسي أو الوسطي، والرواقان الجانبيان، والمحراب الشرقي أو الشرقية وفي بعض التسميات الحَنْيَة، متجهاً نحو الشرق.

البازيليكا هي بالأصل مبنى روماني عام، استخدمه الرومان كقاعة محكمة وأحياناً كمبنى إداري وحكومي وتواجد غالباً بجانب ما يسمى بالفورم (الساحة العامة) والتي اشتهرت في عهد الرومان لكونها سوقاً عاماً للتجارة إلى جانب كونها مكاناً للتجمع والنقاش السياسي. وبعد اعتناق الرومان للمسيحية أخذت الكنائس الرئيسية الشكل البازيليكي البدائي.

يتشكل المسقط البازيليكي من عناصر أساسية تتغير أشكالها في إطار محاولة للبحث عن فراغات أكثر ملاءمة وظيفياً كتحوير أجزاء من شكل البازيليكا أو الإضافة عليها وذلك لاستيعاب عدد أكبر من الزوار، وهي:

الجناح الرئيسي (Nave ) وهو القسم الأوسع في المسقط البازيليكي وذو شكل مستطيل.
الرواقان الجانبيان ( Aisles) يحيطان بالجناح الرئيسي ويتحددان بصف أو صفين من الأعمدة.
المحراب الشرقي (الشرقية) Apes، وهو الجزء نصف الدائري الذي ينتهي به الجناح والأروقة ويحتوي المذبح.
يُضاف أحياناً قسم يسبق الجناح الرئيسي والرواقين وهو فراغ ممهد يدعى الآتريوم (Atrium) وهي قاعة مربعة يمكن للموجودين فيها سماع الموعظة دون الانضمام إلى الفراغ الوسطي للفعالية. وكذلك قسم العلّية (Narthex) والذي يقع بين الممهد والجناح الرئيسي.

ويغطي البازيليكا سقف من الخشب Timber roofed ويعلو سقف بلاطة الجناح الرئيسي عن باقي الأسقف ويختلف شكل التغطية بين جملوني ومسطح أو على شكل قبوة (نصف أسطوانة).

بالعودة إلى تصميم كنيسة قلب لوزة نجد أنها من أكثر النماذج أصالة لعمارة الكناس في شمالي سوريا.

كما يعد بناء هذه البازيليك واحداً من أشجع المحاولات المعمارية في التاريخ البيزنطي، إذ بدلاً من الحصول على الجناح الوسطي للكنيسة عن طريق وضع صفين من الأعمدة يفصلانه عن الأجنحة الجانبية، وضع البناؤون أقواسا كبيرة جداً تستند على عضادات وسطية مما سمح للأجنحة الثلاثة (الوسطي والجانبيان) من خلال اندماجها مع بعضها بتشكيل فراغ واسع ومتكامل.

كما أن الممر وعليّته (النارثكس) الذي يشكل بهواً للدخول، بُني بين برجين توأمين (جانبيين)، وهذه الظاهرة سبقت ما يماثلها في أوروبا بعدة قرون، وهو ما شاع عن الكنائس السورية تحديداً استخدامها في ذلك الوقت كما شاع وجود ما يسمى بالـ Bema وهي مصطبة ترتفع بدرجة أو اثنتين أو ثلاثة أمام الشرقية ليجلس عليها رجل الدين وتحاط بسور.

Thursday, April 11, 2019

印度大选:9亿选民投票 浩大工程背后的具体操作

印度议会大选首阶段投票正式展开,这次选举被视为对总理莫迪(Narendra Modi)执政能力认可的一次公民投票。

从星期四(4月11日)起,全国20个邦与直辖区9亿名已登记选民将分成91个选区投票,共分七阶段,选出人民院(下议院)新一届代议士。

印度选举号称全球规模最大的民主政治工程,参选政党超过450个,投票站共计100万个,需要动用工作人员至少1000万人。

投票将持续至5月19日,并于5月23日计票。

印度前大选专员的一本回忆录中描述了印度大选这一举世无双的民主政治工程,称之为奇迹。

规模如此浩大的选举,涉及世界人口的12%,耗时耗资之大暂且不论,以“自由公正的选举”为口号的普选,具体如何操作,就足以令人好奇。

BBC国际部记者普贾·齐哈布利亚(Pooja Chhabria)可以讲解这场被称为“民主盛事”的大选幕后的操作。

作为执行机构,印度选举委员会需要关照到全国29个邦和7个联邦属地,北部的喜马拉雅山区的崇山峻岭,北部和中部广袤的平原,西部沙漠地带和各地的林区,以及伸向印度洋的半岛漫长的滨海地区。

印度地域广袤,地形复杂多样。海拔最高的地方,设置投票站的人不但要带去投票机器,还得带着氧气罐、睡袋和食物。

交通工具也是包罗万象。除了步行,代步工具从骆驼大象、大小船只、自行车、汽车、火车,到直升机和包机,一应俱全。

使用这些交通工具为大选投票奔忙的专职员工有1000万人左右,大抵相当于瑞典全国总人口,或者是新加坡和香港人口的总和。

这支庞大的队伍里除了选举官员,还有武装警察、观察员、专职摄像师、政府官员、教师。

他们都是经由一套随机选择的机制选出来的,并需要接受特殊训练,以便应对投票站可能出现的各种意料之中或意料之外的情况。

比如北方的比哈尔邦就有“占领投票站”的历史传统,就是一个党强行霸占投票站,用登记注册选民的名字投假选票。这就令不少选民却步,尤其是女选民。改用电子投票机器之后这种情况少了。

这种情况的对策是把投票时间分散为6、7个阶段,不同地点的投票站在投票期间都能有武警守卫。

高科技也派了很大用场,比如用人脸识别技术来防范投票舞弊。据记载,曾有一名女子以不同的伪装去投票站投了60多次票,最后被机器逮住了。

上一次印度选举是在2014年,喀什米尔、阿萨姆和贾坎德邦的情况是最糟糕的。

这次当局事先严加防范,在东部贾坎德邦的一些通往投票站的公路上扫雷;地雷是左派武装游击队埋的。

阿萨姆邦平时就有反叛武装出没,还有部落冲突。为确保投票顺利进行,保安部署更加严密。

选举委员会从一年前开始筹备这次大选。各项准备逐步就绪,投票前进行选民登记。正式投票前必须完成的主要任务中还包括下列内容:

电子投票机(EVM)——100万个投票站都必须配备足够的投票机,安装调试完毕,这也涉及到后勤运输;

确定各地的投票日期——必须考虑到各种宗教和世俗节庆、学校考试日、农忙或恶劣天气,尽可能避免冲突;

贮备充足的擦不掉的“特殊墨汁”,投票时抹在选民手指上,以避免重复投票;

为每一个参选政党和独立候选人分配不同的图标,以便于选民识别。

印度独立后首次普选(1951年10月到1952年2月)之前就有用图标识别候选人的做法,因为那时84%的选民是文盲。这个清单上有很多物件的图像,比如桌子、电话、柜子、牙刷等等。

印度选举官员坦承,后勤准备工作虽然辛苦、繁复、琐碎,却不是最艰巨的。

最艰巨的是让政党守规矩,不撒野,防止贿选。

这件事之所以棘手,一方面因为贿选比较普遍,另一方面是因为参选政党多。第一次大选55个党派角逐,2014年增加到464个,竞争之激烈可以想见。

钱是另外一大难题,主要是政党活动和和竞选经费来源。选举委员会可以警告和处罚犯规的党或候选人,甚至收回分配给它的图标,但无权剥夺或暂停它参选资格。

Wednesday, April 3, 2019

神秘女子携中国护照及电脑病毒,欲闯特朗普海湖庄园被捕

一名携带两本中国护照的女子,带着一个装有恶意软件的U盘涉嫌撒谎混入美国总统特朗普的海湖庄园(Mar-a-Lago)俱乐部。

美国地方法院提起的刑事诉讼文件显示,32岁的张玉静(Yujing Zhang,音译)告诉保安,她当时准备去俱乐部的游泳池。

“由于潜在的语言障碍问题,”工作人员认为她与一名俱乐部成员有亲戚关系,于是让她进去了。

张姓女子在法庭的起诉书中被描述为“亚洲女性”,她被控向一名联邦官员作虚假陈述,并非法进入禁区。

法庭文件显示,在进入该俱乐部时张玉静改变了说法,她告诉前台接待员,她是为了参加“联合国华裔协会”的活动。

接待员知道这是事先安排好的说辞,开始怀疑她。犯罪嫌疑人被带离现场接受进一步询问。

法庭文件显示,她告诉特勤人员,她的朋友(只透露了“查尔斯”的名字)指示她从中国上海前往棕榈滩参加所谓的联合国活动,但她没有提供更多细节。

美国特勤局特工塞缪尔·伊万诺维奇(Samuel Ivanovich)表示,张女士携带了四部手机、一台笔记本电脑、一个外接硬盘和一个装有电脑病毒的U盘,但没带泳衣。

伊万诺维奇在法庭文件中指出,张玉静“能自由、毫无困难地用英语交谈”,随着调查的深入,她对当局的态度变得“咄咄逼人”。

她的律师迄今拒绝置评,她将被拘留至下周的听证会。

如果罪名成立,张玉静可能面临最高五年监禁。

加文·汤马斯(Gavin Thomas),八岁,来自美国中西部的明尼阿波利斯。仅凭这些信息,人们大多会对这个男孩感到陌生。但如果说到假笑男孩、行走的表情包、成熟但尴尬的微笑……数以百万计的中国网民会立即想起一个辨识度极高的笑容。

中国粉丝称他为“假笑男孩”,还有人亲昵地喊他“儿子”、“宝贝”。他在微博上有约250万粉丝,数量超过了不少好莱坞的一线明星,连有210万粉丝的莱昂纳多(Leonardo DiCaprio)都相形失色。

“我的笑容是真的,虽然他们(中国网友)说那是假笑!”接受BBC中文采访时,一脸童稚的加文指着他微笑的照片,自我介绍说:“这是假笑男孩,这是我的样子!”对于这个称呼,他似乎并不介意或排斥。“我觉得那很搞笑呀。”

在2018年“新浪微博之夜”,微博年度最受瞩目的活动上,加文穿着蓝色衬衫与马甲背心的绅士标配,打着鲜黄领带,缓缓走上红毯。年纪小小的他,在不断闪烁的镁光灯前老练地露齿一笑。他把笑容持续挂在脸上几十秒,还接连换了好几个站位,满足现场所有摄影师的要求。加文身高还不及主持人的腰间,却如同明星中的明星,成为当晚的焦点,多位参加该活动的中国名人都上传了与他的“假笑”合影。

加文的妈妈凯特·汤马斯(Kate Thomas)对BBC中文说,加文那略显尴尬的笑容,虽突然而来又瞬间消失,却的确发自真心。“这是家族遗传,加文的爸爸也有奇怪的笑容。”凯特笑说。

标志性的假笑表情,其实是加文在玩游戏《马里奥赛车》(Mario Kart)时专注皱眉的样子。被中国网友配以“大彻大悟”字样的表情,是他在外婆家玩时,突然产生了下一个短视频主题的灵感。他觉得无聊时做的鬼脸,则被网友配上“呵”的字样,通常用来表达不屑。

与他在中国的高人气相比,加文在推特上的粉丝量不足50万。他的粉丝遍布全球,但在美国及其他各地的知名度远低于中国。一个仅仅八岁、还在读小学二年级的美国中西部小男孩,为什么会意外地在太平洋彼岸成为网红?

Thursday, March 21, 2019

台湾金马奖风波四个月之后:傅榆谈致辞争议和台湾民主

走进位于台湾台北市东边的一处老小区,一栋老旧公寓内,隐藏着一间影像工作室。女主人出面迎接,一席深蓝衣着,搭配朴素眼镜,声音婉约,她是36岁的台湾导演傅榆。四个月前,傅榆因为在金马奖上的一句获奖感言在两岸三地引发轩然大波。

四个月后,傅榆终于同意接受BBC中文采访。当谈到自己的电影和台湾政治时,傅榆谈兴颇浓,但当话题触及那场所谓的金马奖台独风波时,她出言谨慎甚至有些回避。在采访接近尾声时,承认在金马奖上发言内容是有所准备的她表示,如果还有机会的话,自己会想的更周全,尽量不要伤害到任何人。

时间倒退到2018年11月17日,台北市国父纪念馆里,正在举办一年一度的电影盛会——金马奖颁奖典礼。台湾女导演傅榆以《我们的青春,在台湾》获得最佳纪录片时,上台后的她一度难掩激动,在发表感言时,每一字每一句都稍作停顿,却相当清晰。

直到最后,她顿了顿,然后缓缓说出:“希望有一天我们的国家可以被当成一个真正独立的个体来看待,这是我身为台湾人最大的愿望。”

在现场收获满场掌声的这段发言立即引发争议——接下来上台的中国大陆演员,在致辞时纷纷强调“中国台湾”或“中国电影”等字眼。颁奖典礼结束后,几乎所有大陆演员都缺席了酒会。第二天,许多中国大陆艺人在社交网络上表态,甚至以“中国一点都不能少”为关键词发贴,强调中国对台湾的主权。

金马奖颁奖礼正值台湾地方选举前一周,两岸议题在台湾讨论正酣。在台湾,很多人称赞傅榆有勇气,说出许多台湾人的心声,连台湾总统蔡英文也公开声援她。

与此同时,对傅榆的负面评论也大量涌来,有人批评她打破了金马奖长期以来不谈政治的默契,可能会毁了金马奖。

傅榆承认自己专门准备了致辞,而不是随机感言。“但是在上台之前,的确脑袋里是一路以来的点点滴滴,从一开始认识他们(获奖片中男女主角),到后来我进入低潮不知道怎么结束,后来终于把它剪出来,这个过程经历了12个版本,每一个版本都是呕心沥血的结果。想到这个过程,想到终于……有机会被更多人看到的时候……现在想起来都还是会有点激动。”曾在致辞时泪流满面的傅榆再度哽咽。

记者追问傅榆对这场风波中各种不同声音的感想,她停顿片刻后轻轻说:“我到现在还是不太会回答这个问题。”

傅榆在沉思许久后对BBC中文说:“(金马奖发言后)大家都很觉得我是女战神、女战士,要去对抗什么,但真的不是这样。我讲这些话,对我来说就是,长久以来,身为一个台湾人,我想被尊重。”

“我们的国家”、“一个真正独立的个体”,这些傅榆的表述被很多人解读成“台独”宣言,但傅榆说:“后来的政治局势 ,让有些人用标签化来看待我的话,我觉得这真的是简化了,这不是我的本意。”她说自己也能了解大陆演员的难处。

傅榆说,自己在乎的是,能不能把每一个人甚至国家都当成是一个个体看待,在尊重彼此的前提下健康地对话。

然而,来自社会大众和舆论的反应,确实让傅榆一度难以招架。她说:“我不想去伤害人,但(结果)我还是伤害了,我也很难过。但如果还有机会的话,我会想的更周全,我希望考虑地更清楚、贴心,尽量不要伤害到任何人。”

情绪投射
傅榆成长在台北的阳明山与天母地区,父亲来自马来西亚马六甲的华侨世家,在当地华侨高中毕业后赴台湾念书,最后在一所台湾大学任教。母亲也来自印度尼西亚华侨家庭。在台北出生长大的傅榆,有着与一般台湾人不同的家庭背景。

上大学后,傅榆看到班上的同学会为了争辩统独议题而剑拔弩张,她开始尝试用镜头去回答 “台湾的蓝绿之间有没有对话的可能”。金马奖获奖纪录片《我们的青春,在台湾》是傅榆的第三部正式作品。 这部纪录片述说的,是一位台湾学生陈为廷与中国大陆在台留学生蔡博艺一同参与社运活动,并建立起革命感情的故事。片中的主角之一蔡博艺是首批来到台湾的陆生,对于台湾的政治活动充满好奇。

在傅榆纪录这两位社会背景不同的学生的同时,台湾社会运动的能量在2014年爆发。当年的“太阳花学运”,抗议学生占领国会议场,将台湾的社会运动推向新的层次,身为学运领袖之一的陈为廷,一夕间成为家喻户晓的大人物。蔡博艺则私底下会偷偷探望陈为廷,并且在一线观察学运。

这些过程被傅榆纪录下来。随后,陈为廷爆红所带来的名声让他自己也有点难以适从。面对汹涌的抗议人群,如何决策,如何做出下一步,何时该撤出国会等,都一度让陈为廷备感焦虑。他甚至在面对傅榆镜头时吐露心声:“我真的畏惧民主。

Thursday, February 28, 2019

मुंबई में आतंकी हमले का खतरा, बढ़ाई गई मेट्रो की सुरक्षा

बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर भारत की कार्रवाई के बाद से पाकिस्तान बौखला गया है. पाकिस्तान आतंकियों के दम पर भारत पर हमले की साजिश रच रहा है. इस बीच आतंकी खतरे को देखते हुए मुंबई मेट्रो को अलर्ट किया गया है. खतरे को देखते हुए मुंबई मेट्रो की सुरक्षा बढ़ा दी गई है.

बता दें कि पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारतीय वायुसेना ने मंगलवार तड़के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों पर बमबारी की. इस बमबारी में 300 आतंकियों के मारे जाने की संभावना है. भारत की कार्रवाई के बाद से पाकिस्तान डरा और सहमा हुआ है. वह लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है.

हमले के बाद से ही पाक की ओर से LoC पर जारी गोलीबारी के बीच बुधवार को पाकिस्तानी लड़ाकू विमान ने भारतीय वायुसीमा का उल्लंघन किया. सीमा में उसके 2 विमान घुस आए और पाक की ओर से इस हरकत के बाद कई जम्मू-कश्मीर और पंजाब के एयरपोर्ट पर विमानों की आवाजाही रोक दी गई थी.

राज्य के लेह, जम्मू, श्रीनगर और पठानकोट के एयरपोर्ट को हाईअलर्ट पर रखा गया है. वहीं गुजरात की जल, थल और वायु तीनों सेनाओं को अलर्ट किया गया है. पाकिस्तान सीमा से सटा होने की वजह से गुजरात बॉर्डर पर भी सुरक्षा बढ़ा दी गई है.

पोरंबदर में कोस्ट गार्ड के जरिए भारतीय मछुआरों के लिए विशेष अलर्ट जारी किया गया है. मछुआरों को सलाह दी गई है कि मरीन कोस्ट गार्ड पर मछलियां पकड़ने ना जाएं.

दिल्ली में भी अलर्ट

खतरे को देखते हुए दिल्ली में भी सुरक्षा कड़ी कर दी गई है. दिल्ली में सभी वाहनों को कड़ाई से चेक किया जा रहा है. दिल्ली पुलिस के जवान हथियारों से लैस हैं. दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर पंजाब और जम्मू कश्मीर से आने वाली सभी गाड़ियों को चेकिंग के बाद ही दिल्ली में जाने की इजाजत दी जा रही है.  दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के सभी बोर्डर पर सुरक्षा कड़ी कर दी है.

दिल्ली मेट्रो को भी रेड अलर्ट जारी कर दिया गया है. इस अलर्ट के तहत अब हर मेट्रो स्टेशन के नियंत्रक को हर 2 घंटे पर पूरे स्टेशन के साथ ही कार पार्किंग एरिया की भी जांच करनी होगी. कुछ भी संदिग्ध पाने पर कंट्रोल सेंटर को इसकी जानकारी देनी होगी.

Wednesday, January 30, 2019

एक्स बॉयफ्रेंड ने की दोबारा बात करने की जिद तो GF ने मांगे 10,000 रुपए!

सोशल मीडिया पर मैनचेस्टर की एक महिला की पोस्ट तेजी से वायरल हो रही है. महिला का धोखेबाज एक्स उससे फिर से बात करना चाहता था लेकिन महिला ने बात करने के लिए एक अनोखी शर्त रख दी.

महिला का दावा है कि उसने अपने धोखेबाज एक्स से दोबारा से बात करने के लिए £100 मांगे.

टोनी ऑस्बॉर्न ने नाथन के साथ तीन साल पहले ब्रेक अप कर लिया था. महिला के मुताबिक, उसके बॉयफ्रेंड ने उसके साथ रिश्ता खत्म करने से पहले उसे धोखा दिया था.

मैनचेस्टर की 19 वर्षीय टोनी ने सोशल मीडिया पर खुलासा किया कि उसका एक्स उससे दोबारा बात करने के लिए गिड़गिड़ा रहा था.

उसने ट्विटर पर अपने फॉलोअर्स के साथ अपनी बातचीत का स्क्रीनशॉट भी शेयर किया. महिला ने पोस्ट का कैप्शन दिया, मैंने अपने एक्स को रिप्लाई करने के लिए £100 देने के लिए कहे और उसने वास्तव में पैसे भेज दिए.

पहले स्क्रीनशॉट में दिखता है कि नाथन महिला से बात करने के लिए गुजारिश कर रहा है- जो कुछ भी करना पड़े, करूंगा...

टोनी ने नाथन को जवाब दिया कि वह उससे तभी बात करेगी जब वह उसे £100 ट्रांसफर करेगा.

नाथन ने तुरंत जवाब दिया, ठीक है, बिल्कुल झूठ नहीं, मुझे अपना बैंक अकाउंट नंबर दो..

महिला ने अकाउंट नंबर भेजा और उसके बाद कहा कि तुम तो अब खामोश हो गए. एक्स ने तुरंत रिप्लाई किया- मैं भेज रहा हूं. इसके बाद टोनी के बैंक अकाउंट ऐप में £100 जमा होने का मैसेज आ गया.

टोनी की पोस्ट वायरल हो गई है और अब तक उस पर 23000 से ज्यादा लाइक्स आ चुके हैं.

हालांकि, महिला ने इस पर सस्पेंस ही रखा कि पैसे लेने के बाद उसने नाथन से बात की या नहीं लेकिन टोनी ने यह क्लियर करना चाहा कि नाथन के लिए किसी भी तरह की सहानुभूति ना रखी जाए.

पोस्ट पर कॉमेंट करते हुए टोनी ने लिखा, हर कोई यह बात जान ले कि इसी शख्स ने मुझे 3 साल पहले धोखा देकर छोड़ दिया था, तो ये उसकी क्षतिपूर्ति है...

इस पोस्ट के बाद कई लोग टोनी के मुरीद हो गए. कुछ लोगों ने कहा कि उसे ज्यादा पैसे मांगने चाहिए थे तो कुछ ने अपने बॉयफ्रेंड को टैग करते हुए कहा कि अगर मैं तुम्हारे साथ ऐसा करती तो अब तक करोड़पति हो चुकी होती.

Tuesday, January 22, 2019

बिहार में सीट बंटवारे पर पेच, 12-8 के फेर में फंसी कांग्रेस

लोकसभा चुनाव 2015 में बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को बिहार में मात देने के लिए कांग्रेस, आरजेडी सहित कई छोटे दलों ने मिलकर महागठबंधन बना लिया है. प्रदेश में एनडीए के सहयोगी दलों के बीच सीट शेयरिंग तय है, जबकि महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर पेच फंसा हुआ है. अभी तक कोई फार्मूला सामने नहीं आया है.

बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में से आरजेडी कम से कम 20 सीटें अपने पास रखना चाहती है. बाकी बची सीटों को सहयोगी दलों के लिए छोड़ रही है. वहीं, कांग्रेस 12 सीटें मांग रही है पर आरजेडी उसे महज 8 सीटें ही देना चाहती है. हालांकि आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने सहयोगी दलों के नेताओं के साथ मुलाकात के बाद ही तय कर दिया था कि 14 जनवरी मकर संक्रांति के बाद सीट बंटवारे का ऐलान कर दिया जाएगा, लेकिन कांग्रेस के 12 सीटों की डिमांड के बाद मामला अभी तय नहीं हो सका.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी 3 फरवरी को बिहार में पटना के गांधी मैदान से 2019 लोकसभा का चुनावी बिगुल फूकेंगे. माना जा रहा है कि राहुल के बिहार दौरे के बाद ही महागठबंधन के सीट शेयरिंग की औपचारिक घोषणा की जा सकती है.

दरअसल कांग्रेस बिहार में 2014 के लोकसभा चुनाव में 12 संसदीय सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी थी और 2 सीटें जीतने में सफल रही थी. यही वजह है कि कांग्रेस इस बार भी 12 सीटों पर दावा ठोक रही है. आरजेडी पिछले लोकसभा चुनाव में 27 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और 4 सीटें जीती थी. हालांकि आरजेडी का तर्क है कि इस बार कई अन्य दल महागठबंधन का हिस्सा बने हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों को समझौते करने होंगे.

दरअसल महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के अलावा आरएलएसपी अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा, वीआईपी अध्यक्ष मुकेश साहनी, हम (सेकुलर) के अध्यक्ष तथा पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल के शरद यादव और वामपंथी सीपीआई (एमएल लिबरेशन) शामिल हैं. इसके अलावा राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव के भी शामिल होने की बात भी कही जा रही है.

एनडीए से नाता तोड़कर महागठबंधन का हिस्सा बने उपेंद्र कुशवाहा 5 लोकसभा सीटें मांग रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि उनके कोटे में 4 सीटें आ सकती है. वहीं, शरद यादव भी 3 सीटों की डिमांड कर रहे हैं, पर उन्हें मधेपुरा सीट से संतोष करना पड़ सकता है. इसके अलावा मांझी भी 3 सीटों पर अड़े हुए हैं, लेकिन उन्हें भी 1 ही सीट मिल सकती है.

हाल ही में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बसपा अध्यक्ष मायावती से मुलाकात की है. ऐसे में माना जा रहा है कि बसपा को भी बिहार में महागठंधन का हिस्सा बनाया जा सकता है. इस तरह कम से कम एक सीटें बसपा के खाते में जाना तय है. इसी तरह से लेफ्ट को एक और एक सीट मुकेश साहनी को दी जा सकती है. 

Thursday, January 10, 2019

चेहरे से कंट्रोल हो जाएगी व्हीलचेयर, जीभ निकालकर या मुस्कुराकर रोक सकेंगे

अमेरिका के लास वेगास में चल रहे कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक शो (सीईएस) में एक ऐसी किट पेश की गई है, जिसकी मदद से किसी मोटराइज्ड व्हीलचेयर को चेहरे के हाव-भाव के जरिए नियंत्रित किया जा सकेगा। यह किट ब्राजील की रोबोटिक्स कंपनी हूबॉक्स ने इंटेल के साथ मिलकर तैयार की है। इसमें इंटेल की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित फेशियल रिकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। किट का नाम 'व्हीली 7' रखा गया है, जिसे चेहरे के 10 अलग-अलग एक्सप्रेशन के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है।

कंपनी के मुताबिक, इससे उन लोगों को मदद मिलेगी, जो व्हीलचेयर में लगी मोटर को अपने हाथों से नियंत्रित नहीं कर सकते। कंपनी ने बताया कि जीभ निकालकर या किसी भी तरह के फेशियल एक्सप्रेशन से व्हीलचेयर को नियंत्रित किया जा सकता है। इस किट का फिलहाल प्रोटोटाइप पेश किया गया है, इसलिए इसकी कीमत के बारे में कंपनी ने कोई जानकारी नहीं दी है।

10 तरह के हावभाव पहचान सकेगी व्हीलचेयर किट
इंटेल ने सीईएस के दौरान लास वेगास कन्वेंशन सेंटर में अपनी इस व्हीलचेयर किट का डेमो दिया, जिसमें दिखाया कि अलग-अलग दिशाओं में व्हीलचेयर को नियंत्रित करने के लिए 10 तरह के हावभाव का इस्तेमाल किया जा सकता है। इंटेल के मुताबिक, चेहरे के हावभाव से ही व्हीलचेयर को चला भी सकते हैं और रोक भी सकते हैं। इंटेल ने बताया कि, ये पूरा सिस्टम एक ऐप की मदद से संचालित होता है। इससे व्हीलचेयर की रफ्तार तय की जा सकती है। व्हीलचेयर को अलग-अलग दिशाओं में ले जाने के लिए चेहरे के अलग-अलग हावभाव को रिकॉर्ड किया जा सकता है।

इंटेल की 3 तकनीकों का हुआ इस्तेमाल
इसमें इंटेल के 3डी इंटेल रियलसेंस डेप्थ कैमरा SR300, इंटेल कोर प्रोसेसर और ओपनवीनो टूलकिट का इस्तेमाल किया गया है। व्हीलचेयर को नियंत्रित करने के लिए यूजर 10 चेहरे के हावभाव को चुन सकते हैं। जैसे- हंसकर, जीभ निकालकर, चेहरे को हिलाकर और आंख मटकाकर व्हीलचेयर को चला सकते हैं, रोक सकते हैं या मोड़ सकते हैं।

चीनी कंपनी श्याओमी ने अपने रेडमी सब-ब्रांड के तहत नया स्मार्टफोन रेडमी नोट 7 गुरुवार को चीन में लॉन्च कर दिया। श्याओमी और रेडमी अब दो अलग-अलग ब्रांड हैं। इस फोन की सबसे बड़ी खासियत है इसका रियर कैमरा। इसके रियर पर ड्युअल कैमरा सेटअप दिया गया है, जिसका प्राइमरी सेंसर 48 मेगापिक्सल और सेकंडरी सेंसर 5 मेगापिक्सल का है। वहीं, इसके फ्रंट में 13 मेगापिक्सल का कैमरा दिया गया है, जो फेस अनलॉक फीचर को भी सपोर्ट करता है।

10 दिन से ज्यादा चलेगी इसकी बैटरी
रेडमी नोट 7 में 4000mAh की बैटरी दी गई है, जो क्विक चार्ज 4 को सपोर्ट करती है। कंपनी का दावा है कि एक बार की चार्जिंग में इसकी बैटरी 251 घंटे का स्टैंडबाय टाइम दे सकती है, यानी इसकी बैटरी 10 दिन से ज्यादा चल सकती है। इसके अलावा, इसकी बैटरी से 23 घंटे का टॉकटाइम, 13 घंटे का वीडियो प्लेबैक और 7 घंटे तक गेमिंग की जा सकती है।

सिर्फ 10,300 रुपए है इसकी शुरुआती कीमत
इस फोन को कंपनी ने तीन वैरिएंट में उतारा है। पहला वैरिएंट 3 जीबी रैम और 32 जीबी स्टोरेज के साथ आता है जिसकी कीमत 999 युआन (करीब 10,300 रुपए) रखी गई है जबकि 4 जीबी रैम और 64 जीबी स्टोरेज वैरिएंट की कीमत 1,199 युआन (करीब 12,400 रुपए) है। वहीं, 6 जीबी रैम और 64 जीबी स्टोरेज वाले वैरिएंट को 1,399 युआन (करीब 14,500 रुपए) में उतारा गया है।